Special Editorial : - दीमक अक्सर किताबों के साथ जो करते हैं, कई बार ठीक ऐसा ही कुछ हम इंसान शब्दों के साथ करते हैं. हम उन्हें अर्थ, प्रासंगिकता और शक्ति के नजरिए से खोखला कर देते हैं. किसी शब्द को बार- बार गलत संदर्भ में इस्तेमाल कर के हम उस शब्द को पूरी तरह से असफल कर देते हैं. वामपंथ अब तक खोखले शब्दों और नारों का गढ़ रहा है. यह ‘फासीवादी’, ‘नाजी’, ‘नरसंहार’, ‘वर्ग शत्रु’ और ‘कट्टर’ जैसे शब्दों को लगातार बोलता है. हाई-स्कूल स्तर की बहस को जीतने के लिए भी वह इन शब्दों का इस्तेमाल कर लेता है. कुछ खास लोगों की की ओर से बोले गए इन शब्दों को लोगगंभीरता से नहीं लेते हैं. वामपंथ का अधिकांश पतन खोखले शब्दों और नारों के कारण हुआ है.
ऐसे में दक्षिणपंथ क्यों पीछे रह जाए? ‘राष्ट्र-विरोधी’ शब्द का इस्तेमाल करने के मामले में इसने भी वामपंथियों के नक्शेकदम पर चलना शुरू कर दिया है. जो भी इनकी राय से अलग गया, उसके लिए यह शब्द बोल दिया जाता है. साल 2001 के संसद हमले के पीछे आतंकवादी अफजल गुरु के लिए जेएनयू परिसर में लोगों के एक समूह ने ‘भारत तेरे टुकड़े टुकड़े / इंशाल्लाह, इंशाल्लाह’ के नारे लगाए जो राष्ट्रविरोधी कृत्य था. इससे देश में गुस्सा आ गया.
लेकिन तब से इस शब्द का अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग किया गया है. आरएसएस समर्थित पत्रिका पाञ्चजन्य ने हाल ही में इंफोसिस को ‘राष्ट्र-विरोधी’ कहते हुए एक लेख प्रकाशित किया. यह एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी के शरीर को पाकिस्तान के झंडे में लपेटने की कोशिश करने के लिए किया जा सकता है.
लेकिन एक भारतीय टेक दिग्गज को ऐसा कहना जो सीधे तौर पर लगभग 2.6 लाख भारतीयों को रोजगार देता है और एक महामारी के बीच में इसकी वर्थ $ 100 बिलियन से अधिक की है. इंफोसिस की गलती क्या है ? जीएसटी साइट पर खराब काम करने के बाद कंपनी आयकर की वेबसाइट के क्रियान्वन में सफल नहीं हो पाई. इसके अलावा यह नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करने वाले कुछ मीडिया आउटलेट्स को फंड करता है.
क्या यह सब इसे राष्ट्र-विरोधी बना देता है? निश्चित रूप से नहीं. लेकिन यह शब्द के महत्व को कम करता है. यह राष्ट्रवाद को कम करता है. एक राष्ट्र के लिए जो दुनिया का नेतृत्व करने की इच्छा रखता है उसके निजी उद्योग पर निशाना साधना गलत है. भारत का निर्माण अकेले सरकार नहीं कर सकती. इसके विकास लक्ष्यों के लिए निजी क्षेत्र की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. रिलायंस, टाटा, इंफोसिस, विप्रो और अन्य दिग्गज लाखों लोगों को रोजगार देते हैं, करों में भारी योगदान देते हैं. CSR के तहत राहत में मदद करते हैं और भारत को गौरवान्वित करते हैं. बिना किसी सबूत के उन्हें निशाना बनाना देश को ही निशाना बनाना है.
आरएसएस ने पाञ्चजन्य के इस लेख से दूरी बना ली. RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा- ‘भारतीय कंपनी के नाते इंफोसिस का भारत की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान है.इंफोसिस संचालित पोर्टल को लेकर कुछ मुद्दे हो सकते हैं परंतु पाञ्चजन्य में इस संदर्भ में प्रकाशित लेख,लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं,तथा पाञ्चजन्य संघ का मुखपत्र नहीं है. अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस लेख में व्यक्त विचारों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.’
संघ ने कम से कम इस लेख को खारिज कर दिया है. लेकिन विपक्ष बिना किसी सबूत के इंडिया इंक को बेवजह कोस रहा है. ‘अंबानी-अडानी एजेंट’ को एक गाली के रूप में इस्तेमाल करना कांग्रेस का रोजाना का काम है.
पंजाब में कांग्रेस समर्थित बिचौलिए-किसानों के विरोध के दौरान हजारों Jio टावरों पर हमला किया गया और तोड़ दिया गया. भारतीय राजनीति को देश के उद्योग को कमजोर करने से पहले सौ बार सोचना चाहिए. भारत के व्यापार और उद्योग के दिल पर हमला करना राष्ट्रविरोधी है.