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मध्य प्रदेश : ग्वालियर में 25 साल से एक दूसरे से कानूनी की लड़ाई लड़ रही दंपती बुढ़ापे में बने एक दूसरे के साथी।

मध्य प्रदेश : ग्वालियर में 25 साल से एक दूसरे से कानूनी की लड़ाई लड़ रही दंपती बुढ़ापे में बने एक दूसरे के साथी।


मध्य प्रदेश। ग्वालियर के कुटुंब न्यायालय में पिछले 25 साल से एक दूसरे से कानूनी लड़ाई लड़ रही दंपती एक हो गई। बेटे के विवाह के पहले दोनों को समझ आया कि 25 साल की लड़ाई में दोनों को हासिल कुछ नहीं हुआ, लेकिन दोनों बहुत कुछ खो दिया। 2016 में पति ने ग्वालियर के कुटुंब न्यायालय में तलाक आवेदन लगाया। इस तलाक के आवेदन पर कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। पति की उम्र 65 साल हो चुकी है।

वहीं मालूम हो कि ग्वालियर के एक जोड़े का विवाह 6 मई 1986 को हुआ था। 2 फरवरी 1989 को उनके बेटे का जन्म हुआ लेकिन धीरे-धीरे पति-पत्नी के बीच विवाद बढ़ते गए। अहम को लेकर दोनों में विवाद होने लगे। पत्नी ने 1997 में पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करा दिया। पत्नी बेटे को अपने साथ लेकर भोपाल में अलग रहने लगी।

वहीं दूसरी तरफ़ जानकारी के अनुसार दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज होने के बाद पत्नी ने पति की शिकायतें शुरू कर दी। पत्नी की शिकायतों पर पति सतपुड़ा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की नौकरी से बर्खास्त हो गए। पति के नौकरी पर बहाली हुई लेकिन पति ने दुबारा नौकरी ज्वाइन नहीं की बल्कि उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के बरुआसागर में आकर खेती करने लगा। 

वहीं वर्ष 1997 में पत्नी ने पति पर दहेज प्रताड़ना का केस लगा दिया था। इस दहेज प्रताड़ना के चलते पति बैंक मैनेजर के पद से बर्खास्त हो गए थे।इसी बीच पत्नी ने पति पर अपने भरण पोषण का केस दायर किया। कोर्ट ने पत्नी को एक हजार रुपये का भरण पोषण दिए जाने का आदेश दिया।

वहीं जानकारी हो कि 2016 में पति ने ग्वालियर के कुटुंब न्यायालय में तलाक आवेदन लगाया। इस तलाक के आवेदन पर कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। पति की उम्र 65 साल हो चुकी है। अधिवक्ता का कहना है कि पति-पत्नी को झगड़े के नुकसान बताए गए। बेटे का विवाह होने वाला था। उनके बेटे का जीवन भी उनकी तरह न हो जाए। यह सब सोच कर दोनों साथ रहने के लिए तैयार हुए है। पति-पत्नी मिलकर अब बेटे के विवाह को पूरे कर्तव्य से निभाएंगे। 22 अप्रैल 2022 को कुटुंब न्यायालय से अब साथ रहने की बात कह कर विदा हुए।

वहीं उन्होंने कहा कि लड़ाई लड़ने में कोई फायदा नहीं है। बुढ़ापे में अब एक दूसरे का सहारा बनेंगे। दांपत्य जीवन उनका जैसा बीता, वैसा असर बेटे का ना बीते। ये सोच कर बेटे के विवाह के पहले दोनों एक हुए हैं। दूसरे को सबक सिखाने के लिए 25 साल तक कानूनी लड़ाइयां लड़ी। पत्नी की शिकायतों से पति परेशान हो चुके थे, जिसके चलते फिर नौकरी नहीं की। पत्नी ने फंड भी रुकवा दिए थे।

वहीं दूसरी ओर बेटा पत्नी के पास रह रहा था, लेकिन पति ने बेटे से मिलना बंद नहीं किया। इस कारण पिता की बेटे से दूरी नहीं बन सकी। पत्नी को पति से एक हजार रुपये भरण पोषण मिलता था, उसी भरण पोषण पर अपना जीवन चलाना पड़ रहा था।