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यूपी : टाइगर पांडे के आंखों में बेबसी के आंसू , कभी अपनी जान पर खेलकर बचाई थी एडीएम की जान

यूपी : टाइगर पांडे के आंखों में बेबसी के आंसू , कभी अपनी जान पर खेलकर बचाई थी एडीएम की जान


लखनऊ. यूपी की राजधानी लखनऊ के रहने वाले जांबाज होमगार्ड (Home Guard) ‘टाइगर’ विष्णु कुमार पांडेय (बीके पांडेय) ने 1 सितंबर 2015 को बीपीएड धारकों के प्रदर्शन के दौरान तत्कालीन एडीएम निधि श्रीवास्तव की जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी.इस हादसे में उन्होंने अपनी दाहिनी आंख खो दी थी, लेकिन अब उनका अपने विभाग से भरोसा उठ गया है. दरअसल ड्यूटी के दौरान अपनी एक आंख की रोशनी गंवाने वाले टाइगर पांडेय को उनके अपने विभाग ने ही भुला दिया है. विभाग ने न तो उनकी कोई आर्थिक मदद की और न ही उनका प्रशस्ति पत्र देकर हौसला बढ़ाया गया.

इतना ही नहीं, इलाज के लिए भी किसी प्रशासनिक अधिकारी ने कोई कदम नहीं उठाया. पिछले 7 सालों से ‘टाइगर’ पांडेय की आंख पर ही चोट का दर्द ही नहीं है बल्कि मलाल भी है. आखिर उनकी सेवा और कर्तव्यनिष्ठा कागजों में कहीं दब कर रह गई है.


1 सितंबर 2015 को लखनऊ शहर के विधान भवन के ठीक सामने बीपीएड (बैचलर इन फिजिकल एजुकेशन) धारको ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया था. विधान भवन के सामने से उन्हें हटाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे थे. उस वक्त एडीएम पूर्वी निधि श्रीवास्तव बीपीएड धारकों को समझाने के लिए उनके बीच चली गई थीं. उसी समय उग्र प्रदर्शन हो गया था. प्रदर्शनकारियों के बीच में वह फंस गई थीं. उस वक्त सभी आला अधिकारी एडीएम निधि श्रीवास्तव को प्रदर्शनकारियों के बीच में छोड़कर भाग गए थे, तब उनकी जान बचाने के लिए इस जांबाज होमगार्ड विष्णु कुमार पांडेय ने अपनी जान पर खेलकर सभी से लड़ते हुए उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला था. एडीएम को बचाते हुए उन्होंने अपना संतुलन खो दिया था और उनकी आंख पर प्रदर्शनकारियों ने पत्थर मार दिया था जिस वजह से उनकी दाहिनी आंख का पर्दा फट गया और पिछले 7 सालों से टाइगर पांडेय एक ही आंख से देखते हैं.


बीके पांडेय ने 29 दिसंबर 2015 को अपर जिलाधिकारी को पत्र लिखकर बताया था कि 28 दिसंबर 2015 को उन्होंने लखनऊ के ही सिविल हॉस्पिटल में अपनी आंख की जांच कराई थी. सिविल हॉस्पिटल ने उनकी आंखों के सभी जांचों के बाद यह कहा था कि यहां वो उपकरण मौजूद नहीं हैं, जिससे उनकी आंखों का इलाज हो सके, क्योंकि इस आंख का इलाज बहुत जटिल है. ऐसे में सिविल हॉस्पिटल ने उनको मेडिकल कॉलेज लखनऊ में जाकर इलाज कराने की सलाह दी थी. उस वक्त बीके पांडेय ने अपने इस पत्र में अपर जिलाधिकारी से यह आग्रह किया था कि मेडिकल कॉलेज में उनके इलाज को निशुल्क कराने की कृपा करें, लेकिन यह कागज भी सरकारी विभाग में सभी फाइलों की तरह कहीं दब कर रह गया है.


इस मामले पर जब News18 की लोकल टीम ने बीके पांडेय से बात की तो उनका कहना था कि उन्हें अपर जिलाधिकारी समेत अधिकारियों से कई प्रशस्ति पत्र तो मिले, लेकिन उनके अपने होमगार्ड विभाग ने कभी भी उनको एक प्रशस्ति पत्र तक नहीं दिया. इतना ही नहीं उनकी किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता भी नहीं की गई. हालांकि तत्कालीन डीआईजी होमगार्ड संतोष कुमार सिंह जब उन्हें घायलावस्था में देखने के लिए आए थे तो उन्होंने उनको टाइगर की उपाधि देते हुए नेम प्लेट जरूर भेंट की थी. आर्थिक रूप से बेहद कमजोर होने की वजह से वह अपनी आंख का ऑपरेशन तक नहीं करा सके और हैरानी की बात तो यह है कि वह पत्र लिखते रह गए कि उनकी आंख का ऑपरेशन करा दिया जाए, लेकिन न तो प्रशासन स्तर पर उनकी कोई मांग सुनी गई और न ही शासन स्तर पर. आज बीके पांडेय को अपनी दाहिनी आंख गंवाए करीब 7 साल बीत गए हैं, लेकिन उनके जेहन में यह पूरा हादसा आज भी जिंदा है जैसे मानो कल की ही बात हो.


इस मामले पर डीजी होमगार्ड्स विजय कुमार का कहना था कि उन्हें लखनऊ में आए हुए अभी ढाई साल ही हुए हैं. इस वजह से यह मामला उनके संज्ञान में नहीं था.अब उनके संज्ञान में है तो उन्होंने अपने पर्सनल असिस्टेंट से कहकर बीके पांडेय को तुरंत फोन लगवाया और उन्हें मिलने के लिए बुलाया है. इसके अलावा उन्होंने फोन पर ही अपने पीए से उनकी हर तरह की मदद का आश्वासन देने के लिए भी कहा. जबकि जिला होमगार्ड कमांडेंट अतुल कुमार सिंह से बात की गई तो उनका कहना था कि विष्णु कुमार पांडेय की अक्सर उनके पास तारीफें आती रहती हैं, लेकिन कभी भी किसी ने कोई शिकायत नहीं की. मामला 2015 का है तब वह यहां पर तैनात नहीं थे, लेकिन अब उनके संज्ञान में यह मामला आया है. विष्णु कुमार पांडेय अपनी सभी फाइल्स और जो भी डाक्यूमेंट्स हैं उसे लेकर सीधा उनसे मिल सकते हैं. उनके इस मामले को शासन तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा और कोशिश की जाएगी कि उनकी आर्थिक मदद की जाए.