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धर्म विशेष :: जब काशी आए थे गुरु तेग बहादुर सिंह, 359 साल पहले लगाई थी अर्जी, मां गंगा को गुरुद्वारे में ही बुला लिया था...

धर्म विशेष :: जब काशी आए थे गुरु तेग बहादुर सिंह, 359 साल पहले लगाई थी अर्जी, मां गंगा को गुरुद्वारे में ही बुला लिया था...

धर्म विशेष :: ये गुरु बंदगी के प्रति अगाध प्रेम और आस्था ही थी कि सौ साल की उम्र पार कर चुके काशी के सिख धर्म के अनुयायी कल्याण जी के गुरु चरणों के ध्यान करने मात्र से ही नौवें गुरु तेग बहादुर महाराज काशी आ गए थे। उन्होंने अपने अनुयायी कल्याण जी को दर्शन दिए। उनके यहां सात महीने 13 दिनों तक प्रवास भी किया।

उस वक्त काशी के विद्वानों, संन्यासियों और वैरागियों ने भी उनके चरणों में आकर बंदगी की। आज भी नीचीबाग गुरुद्वारे में 359 साल पहले आए गुरु तेग बहादुर की तमाम निशानियां मौजूद हैं। इनके दर्शन के लिए देश-विदेश से संगत आती है। 

वह नीचीबाग स्थित कल्याण दास के आवास पर ही ठहरे थे। वाहे गुरु नाम का सुमिरन करने और गुरुवाणी का संदेश देते थे। 

गुरुद्वारे के मुख्य ग्रंथी रंजीत सिंह ने बताया कि गुरुद्वारे में गुरु तेग बहादुर महाराज की तपस्या स्थल, ठहरने का कमरा, उनका चोला, जूता, हुकुमनामा आदि मौजूद है। दूर-दराज से आने वाली संगत इसका दर्शन करती है।

मां गंगा जी को घर में ही बुला लिया था

रंजीत सिंह ने बताया कि गुरुद्वारे में कुआं है, जिसमें गुरु तेग बहादुर ने मां गंगा जी को बुलाया। तबसे इस कुएं का जल संगत के लिए अमृत के समान है। उन्होंने बताया कि ग्रहण के दिन गंगा स्नान करने के लिए गुरु ने घर में ही मां गंगा जी को बुला लिया था। 

उन्होंने अपने चरण से एक शिला हटाया तो गंगा का जल प्रवाहित होने लगा। उन्होंने स्नान करने के बाद गंगा के प्रवाह को रोकने के लिए दोबारा शिला वहीं रख दी। मगर वहां श्रोत (बाउली साहिब) आज भी मौजूद है।

प्रचार के दौरान ही गुरु गोविंद सिंह का हुआ था जन्म

सिख धर्म के प्रथम गुरू धन्य गुरुनानक देव महाराज के सिख धर्म मिशन का प्रचार करने गुरु तेग बहादुर निकले थे। वह दिल्ली, मथुरा, कानपुर से होते हुए प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पहुंचे थे। यहां से मिर्जापुर होते हुए काशी आए। वह काशी से सासाराम, गया होकर पटना पहुंचे। वहीं पर उनके बेटे गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ।

अग्रहरि व सोनार समाज के भी लोग बन गए संगत

काशी में गुरु तेग बहादुर की तपस्या देखते हुए और समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों ने भी सिख धर्म को स्वीकार कर लिया था। अग्रहरि, सोनार, खत्री, हलवाई आदि समाज के लोगों ने भी इस धर्म को स्वीकार कर लिया। उनके शिष्य मिर्जापुर, चंदौली व जौनपुर के भी लोग बने।