UP Power Department: बिजली विभाग में बड़ा घपला, उपभोक्ताओं से वसूला गया नाजायज बिल, डैमेज कंट्रोल में जुटा निगम,,,।
लखनऊ, राज्य ब्यूरो,एन.के.यादव की रिपोर्ट। बिजली कंपनियों द्वारा प्रदेश के कुछ जिलों में सप्लाई टाइप में बदलाव कर ग्रामीण विद्युत उपभोक्ताओं से शहरी दर पर बिजली बिल की वसूली के मामले में नया मोड़ आया है। इस प्रकरण में उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के दखल के बाद पावर कारपोरेशन प्रबंधन ने विद्युत आपूर्ति संहिता की नियमावली का सहारा लेते हुए विवाद के दायरे में आ रहे ग्रामीण फीडरों को शहरी फीडर घोषित करने की तैयारी शुरू कर दी है।
इस संबंध में कारपोरेशन के निदेशक वाणिज्य अमित कुमार श्रीवास्तव ने सभी बिजली वितरण कंपनियों को पत्र जारी किया है। यह पत्र विद्युत नियामक आयोग के जवाब तलब करने के बाद जारी किया है।
कार्यवाही शुरू करने की मांग
विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस पूरे मामले का राजफाश करते हुए विद्युत नियामक आयोग को तमाम साक्ष्य उपलब्ध कराते हुए बिजली कंपनियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की है।
सात दिनों में रिपोर्ट तलब
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि इस प्रकरण में विद्युत नियामक आयोग ने पावर कारपोरेशन से 10 दिन में रिपोर्ट तलब की थी। एक माह से ज्यादा समय बीत जाने के बाद दोबारा आयोग ने जवाब-तलब किया तो कारपोरेशन ने एक माह का समय मांगा और इसी बीच पावर कारपोरेशन के निदेशक वाणिज्य की ओर से 26 सितंबर को सभी बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक को विवाद के दायरे में आ रहे ग्रामीण फीडरों को शहरी फीडर घोषित करने के निर्देश देते हुए सात दिनों में रिपोर्ट तलब की गई।
पावर कारपोरेशन ने कार्रवाई से बचने के लिए नया तरीका निकाला है। आयोग को गुमराह करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा, जिससे जवाब भी तैयार हो जाए और कार्रवाई से भी बच जाएं।
-अवधेश कुमार वर्मा, अध्यक्ष, विद्युत उपभोक्ता परिषद।
शहरी फीडर घोषित करना आसान नहीं
वर्मा का कहना है कि यूं ही कोई शहरी फीडर घोषित नहीं किया जा सकता है। शहरी फीडर घोषित होने पर संबंधित क्षेत्र में शहरों की तरह उपभोक्ताओं को सुविधाएं भी देनी होगी। गौर करने की बात यह है कि वर्ष 2016 में सपा सरकार के दौरान तत्कालीन कारपोरेशन के अध्यक्ष संजय अग्रवाल ने इस संबंध में दाखिल याचिका को ही आयोग से वापस ले लिया था।