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धार्मिक यात्रा : विश्व का अनोखा हनुमान मंदिर जो साल में एक बार खुलता है, त्रेतायुग से है इस का संबंध, आइए जानें, पढ़े विस्तार से,,,।

धार्मिक यात्रा : विश्व का अनोखा हनुमान मंदिर जो साल में एक बार खुलता है, त्रेतायुग से है इस का संबंध, आइए जानें, पढ़े विस्तार से,,,।

धार्मिक यात्रा में आज हम आपको एक ऐसे हनुमान मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जो साल में सिर्फ एक बार खुलता है। यह हनुमान मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। यह संसार का ऐसा पहले मंदिर है जो त्रेता युग में भगवान रामचंद्र जी द्वारा समुद्र को सुखाने के लिए छोड़े गए है जिसका वर्णन हम आपको आगे बताते हैं। 

जिस दिन हनुमानजी का यह मंदिर खुलता है, यहां दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं।सबसे खास है कि यहां स्थापित हनुमानजी की मूर्ति भी अन्य मंदिरों की तुलना में काफी अलग है। आइए इस हनुमान मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं,,,,,।

कौन-सा है यह हनुमान मंदिर?

यह प्रसिद्ध हनुमान मंदिर वाराणसी में है। इस मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए साल में सिर्फ एक दिन ही खुलते हैं। यह हनुमान मंदिर काशी नरेश के किले के अंदर है। इस किले को रामनगर किला भी कहते हैं। इस किले के अंदर ही यह हनुमान मंदिर बना हुआ है। मान्यता के मुताबिक, हनुमानजी का यह मंदिर संंबंध त्रेता युग से है।

क्या है इस मंदिर की खासियत?

हनुमानजी का यह मंदिर प्रसिद्ध है। मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति श्यामवर्ण है। जबकि आमतौर पर हर मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति सिंदुरी रंग की होती है। इस मूर्ति का रंग श्यामवर्ण क्यों है इसका संबंध त्रेता युग से बताया जाता है। हनुमान जी की यह मूर्ति दक्षिणमुखी है। ऐसा कहा जाता है कि पूर्ववत काशी नरेश को यहां किले की खुदाई में यह मूर्ति स्वंय मिली थी जिसे बाद में काशीराज परिवार ने हनुमानजी द्वारा स्वप्नादेश से अपने किले में स्थापित कर दिया था।

क्या है इस मंदिर की पौराणिक मान्यता?

पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम लंका पर विजय पाने के लिए निकले और जब रामेश्वरम में समुद्र के किनारे पहुंचे तो उन्होंने समुद्र से रास्ता मांगा। पर समुद्र ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था जिससे क्रोधित होकर भगवान श्रीराम ने अपना धनुष निकाल कर उस पर बाण चढ़ा ली थी और समुद्र को सुखा देने के लिए बाण छोडऩा चाहते थे। इससे डर कर समुद्र खुद प्रकट हुआ और प्रभु से माफी मांगी। भगवान श्रीराम ने समुद्र को माफ तो किया लेकिन धनुष पर चढ़ाए बाण को पश्चिम की दिशा में छोड़ दिया। कहा जाता है कि इस बाण के टकराने से धरती हिल सकती थी इसलिए धरती को बचाने के लिए हनुमानजी घुटने के बल पर बैठ गए और उस बाण के तेज से उनका रंग काला पड़ गया। अपने परम प्रिय भक्त हनुमान का यह श्याम वर्ण रंग देखकर भगवान राम ने उनके इस स्वरूप को स्वयं काशीराज के महलों में निवास करने के लिए कहा।

साल में दशहरा के बाद एक दिन के लिए शरद पूर्णिमा के पूर्व इस मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला में रामराज्याभिषेक के बाद बंदर भालुओं की विदाई करने के उपरांत भगवान श्री रामचंद्र जी की चारों भाइयों के साथ भोर की आरती होने के पश्चात इस मंदिर का पट खोला जाता है, जिसका दुर्लभ दर्शन सिर्फ उसी दिन होता है। और शाम होते-होते मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है।
!!! जय श्री राम !!! जय बजरंगबली !!!
पिताश्री की बाते.......