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वाराणसी : आद्य शंकराचार्य की जयंती काशी में उत्सव के रूप में मनाई गई, चारों वेदों का हुआ परिभाषित,  नाट्य मंचन का भी हुआ आयोजन,,,।

वाराणसी : आद्य शंकराचार्य की जयंती काशी में उत्सव के रूप में मनाई गई, चारों वेदों का हुआ परिभाषित, नाट्य मंचन का भी हुआ आयोजन,,,।


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एजेंसी डेस्क : (वाराणसी, ब्यूरो)।काशीपुराधिपति की नगरी में वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी पर मंगलवार को आद्य शंकराचार्य की जयंती उत्सव के रूप में मनाई गई। केदारघाट स्थित श्री विद्यामठ में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की प्रेरणा से आद्य शंकराचार्य की जयंती पर वैदिक और पौराणिक मंगलाचरण से कार्यक्रम की भव्य शुरूआत हुई।  

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वेद-शास्त्रों के ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आद्य गुरु शंकराचार्य ने देश भर की यात्रा की और जनमानस को हिंदू वैदिक सनातन धर्म तथा उसमें वर्णित संस्कारों के बारे में अवगत कराया। उनके दर्शन ने सनातन संस्कृति को एक नई पहचान दी और भारतवर्ष के कोने-कोने तक उन्होंने लोगों को वेदों के महत्व पूर्ण ज्ञान से अवगत कराया। इससे पहले यह भ्रामक प्रचार था कि, वेदों का कोई प्रमाण नहीं है। 

आद्य गुरु शंकराचार्य के बारे में कहा जाता है कि 8 वर्ष की आयु में उन्होंने 4 वेदों का ज्ञान, 12 वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों का ज्ञान तथा 16वर्ष की आयु में उपनिषद् आदि ग्रन्थों के भाष्यों की रचना की। इन्होंने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की जो अभी तक प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। 

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ये चारों स्थान हैं- ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और पुरी गोवर्धन पीठ। आद्य गुरु शंकराचार्य ने भगवद् गीता तथा ब्रह्म सूत्र पर शंकर भाष्य के साथ ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा।

उन्होंने अनुभव किया कि ज्ञान की अद्वैत भूमि पर जो परमात्मा निर्गुण निराकार ब्रह्म है, वही द्वैत की भूमि पर सगुण साकार है। उन्होंने निर्गुण और सगुण दोनों का समर्थन करके निर्गुण तक पहुंचने के लिए सगुण की उपा सना को अपरिहार्य मार्ग माना। जहां उन्होंने अद्वैत मार्ग में निर्गुण ब्रह्म की उपासना की, वहीं उन निर्गुण ब्रह्म की सगुण साकार रूप में उन्होंने भगवान शिव, मां पार्वती, विघ्नहर्ता गणेश तथा भगवान विष्णु आदि के भक्तिरस पूर्ण स्तोत्रों की रचना कर उपास ना की। 

इस प्रकार उन्हें सनातन धर्म को पुन: स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है। उनका दृढ़ विश्वास था कि जीव की मुक्ति के लिए ज्ञान आवश्यक है।

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आद्य शंकराचार्य के विग्रह पर पुष्प अर्पण के बाद साध्वी पूर्णाम्बा ने जीवनी पर प्रकाश डाला। इसके बाद जीवनी पर आधारित एकांकी को अभिनव व्यास, रजनीश दुबे, त्रियुगतिवारी आदर्श पाठक, हरेकृष्ण मिश्रा, देवेंद्र दुबे, विष्णु भारद्वाज व विकास तिवारी आदि वैदिक छात्रों ने प्रस्तुत किया। 

एकांकी में आद्य शंकराचार्य व चंडाल से सम्बंधित नाटिका का भी प्रस्तुतिकरण किया गया। डॉ. मञ्जरी पाण्डेय ने शिव पंचाक्षर स्त्रोत प्रस्तुत किया। जयंती उत्सव का समापन आद्य भगवान के आरती पूजन के साथ हुआ। 

जयंती समारोह में साध्वी शारदम्बा, सजंय पाण्डेय, हजारी कीर्ति शुक्ला, बसंत राय, हजारी सौरभ शुक्ला, संतोष केसरी, सुनील शुक्ला आदि उपस्थित रहे।