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मेघायल से PM मोदी का चीन को संदेश, कहा- भारत डंके की चोट पर करेगा अपने बॉर्डर एरिया का विकास

मेघायल से PM मोदी का चीन को संदेश, कहा- भारत डंके की चोट पर करेगा अपने बॉर्डर एरिया का विकास

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शिलांग: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को मेघालय के दौरे पर पहुंचे. वह शिलांग में उत्तर पूर्व परिषद (North Eastern Council) की स्वर्ण जयंती समारोह में शामिल हुए और 50 वर्षों में पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में एनईसी के योगदान को उल्लेखित करने वाला स्मारक ग्रंथ 'गोल्डन फुटप्रिंट्स' जारी किया.

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प्रधानमंत्री ने राज्य में 2,450 करोड़ रुपये से अधिक की कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया. इस मौके पर उन्होंने बिना नाम लिए चीन को कड़ा संदेश दिया. आपको बता दें कि लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक चीन के साथ भारत की 3500 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. ड्रैगन बॉर्डर पर भारत के विकास कार्यों का विरोध करता रहा है और समय-समय पर उसकी बौखलाहट सामने आती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिलांग में कहा कि भारत अपनी सीमाओं का विकास डंके की चोट पर करेगा और उसे इससे कोई ताकत नहीं रोक सकती.


उन्होंने कहा, ‘लंबे समय तक देश में यह सोच रही है कि बॉर्डर एरिया में विकास हुआ, कनेक्टिविटी बढ़ी तो दुश्मन को फायदा होगा. मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता हूं कि क्या ऐसा भी कभी सोचा जा सकता है. पहले की सरकार की इस सोच के कारण नार्थ-ईस्ट समेत देश के सभी सीमावर्ती क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बेहतर नहीं हो पाई. लेकिन आज डंके की चोट पर बॉर्डर पर नई सड़कें, नई टनल, नए पुल, नई रेल लाइन, नए एयर स्ट्रिप, जो भी आश्वयक है, एक के बाद एक…उसके निर्माण का काम तेज गति से चल रहा है. जो समीवर्ती गांव कभी वीरान हुआ करते थे, हम उन्हें वाइव्रेंट बनाने में जुटे हैं. जो गति हमारे शहरों के लिए महत्वपूर्ण है, हमारे बॉर्डर पर भी वही गति होनी आवश्यक है. इससे यहां टूरिज्म भी बढ़ेगा और जो लोग गांव छोड़कर गए हैं, वे वापस लौट के आएंगे.’



प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के लिए बॉर्डर एरिया की महत्ता बताते हुए कहा, ‘हमारे लिए, पूर्वोत्तर, हमारे सीमावर्ती क्षेत्र अंतिम छोर नहीं हैं, बल्कि सुरक्षा और समृद्धि के द्वार हैं. देश की सुरक्षा यहीं से होती है और दूसरे देशों से व्यापार यहीं से होता है. राज्यों के बीच दशकों से चले आ रहे सीमा विवाद सुलझाए जा रहे हैं. पिछले 8 वर्षों में पूर्वोत्तर के कई उग्रवादी संगठनों ने हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति का रास्ता अपनाया. पूर्वोत्तर में AFSPA की जरूरत न रहे, इसके लिए राज्य सरकारों के साथ समन्वय कर स्थिति में लगातार सुधार किया जा रहा है. लंबे समय तक देश में सरकारें चलाने वाले राजनीतिक दलों की नॉर्थ ईस्ट के लिए ‘डिवाइड’ की मानसिकता थी, हम ‘डिवाइन’ की मानसिकता के साथ आए हैं. अलग-अलग समुदाय हों, क्षेत्र हों- हम सभी विभाजनों को दूर कर रहे हैं. हम पूर्वोत्तर में विवादों की सरहद नहीं, विकास के गलियारे बना रहे हैं.’