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माता कुशहरी देवी पूरी करती हैं सभी मन्नत, 'कुश' के नाम पर रखा गया था इस मंदिर का नाम

माता कुशहरी देवी पूरी करती हैं सभी मन्नत, 'कुश' के नाम पर रखा गया था इस मंदिर का नाम


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एजेंसी डेस्क
उत्तर प्रदेश के उन्नाव को साहित्य की नगरी और तपोभूमि भी कहा जाता है. यहां कई सिद्ध पीठ हैं जिनकी बहुत मान्यता है.त्रेता युग में यहां कई सिद्ध पीठ की स्थापना हुई. इन सिद्ध पीठों की आज बड़ी आस्था के साथ पूजा की जा रही है. ऐसे ही एक सिद्ध मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. उन्नाव मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर लखनऊ की ओर कुशहरी देवी मंदिर स्थित है. इस मंदिर का नाम सीता माता के बेटे कुश के नाम पर रखा गया था. इस मंदिर की बड़ी मान्यता है.

सैकड़ों की तादाद में हर रोज लोग इस मंदिर के दर्शन करने जाते हैं. कतार बद्ध तरीके से अपनी बारी का इंतजार करते हैं और मां के दर्शन करके अपने सारे दुखों से मुक्ति पा जाते हैं. कहा जाता है कि मां के दर्शन करने से ही सारे दुख, दर्द, भय दूर हो जाते हैं और सुख की अनुभूति होती है. वहीं दुर्गा कुशहरी मंदिर के साइड में एक तालाब है जहां की मछलियां और कछुए आपका मन मोह लेंगे. दर्शनार्थी मछलियां और कछुओं को दाना भी डालते हैं.

दूर-दूर से आते हैं भक्त दर्शन के लिए

उन्नाव मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर और नवाबगंज से 3 किलोमीटर कुसुंभी रोड पर स्थित मां कुशहरी देवी का मंदिर बड़ा ही प्राचीन और विख्यात है.

 लखनऊ कानपुर रायबरेली सहित अन्य जनपदों से लोग मां के दर्शन करने के लिए आते हैं. कहते हैं कि जो यहां पर मुराद लेकर आता है. उसकी मनोकामना पूरी होती है. सच्चे मन से आए हर भक्तों की इच्छा पूर्ण होती है. नवरात्रि के दिनों में यहां खासा भीड़ देखने को मिलती है.

मां सीता के बेटे कुश के नाम पर पड़ा मंदिर का नाम

कुशहरी देवी का मंदिर त्रेता युग का बताया जाता है. कहा जाता है कि सीता मां को जब धोबी के कहने पर भगवान राम ने वनवास के लिए भेजा था. तब लक्ष्मण जी सीता माता को उन्नाव के रास्ते वाल्मीकि के आश्रम ले जा रहे थे. तभी रास्ते में सीता माता को प्यास लगी तो लक्ष्मण जी एक कुएं से पानी लेने पहुंचे. तभी कुएं से आवाज आई ‘हमें कुएं से निकालो’ जब लक्ष्मण को मातृ शक्ति का आभास हुआ.

लक्ष्मण ने कुएं में माता की मूर्ति देखी और निकाल कर टीले पर बरगद के पेड़ के पास रख दी और सीता माता को वाल्मीकि के आश्रम के पास छोड़ दिया. वही सीता माता ने वहां रहकर अपने दो पुत्रों का पालन पोषण किया और वहीं पर जब लव कुश ने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोका, तो भगवान राम को आना पड़ा और सीता मां ने युद्ध विराम कराया. तब सीता ने अपने पुत्रों को बताया था कि यही आपके पिता हैं. वही जब राम लव कुश अयोध्या की तरफ लौट रहे थे. तब सीता ने बताया कि यहां लक्ष्मण ने मूर्ति रखी थी. फिर लव कुश ने पूजा स्थापना की जिसके बाद से इस धाम का नाम कुशहरी देवी हो गया.