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बिहार : भागलपुर के विक्रमशिला सेतु पर मंडराया खतरा, वहीं पुल के पायों में आई दरार।

बिहार : भागलपुर के विक्रमशिला सेतु पर मंडराया खतरा, वहीं पुल के पायों में आई दरार।


भागलपुर। उचित रखरखाव के अभाव में 23 जुलाई 2001 में चालू हुए विक्रमशिला सेतु का बुरा हाल है। इस सेतु के पायों में दरारें पड़ गई हैं। सेतु की रेलिग क्षतिग्रस्त और सड़क जर्जर हो गई है। जुलाई 2021 में यह बात सामने आई कि विक्रमशिला सेतु के पिलर संख्या तीन में दरार पड़ गई है, लेकिन जब जांच कराई गई तो पता चला कि पिलर संख्या तीन में ही नहीं, बल्कि पाया संख्या चार में भी दरार पड़ गई है। 

वहीं पायों में दरार इस सेतु के अस्तित्व पर खतरे की घंटी है। विशेषज्ञों के अनुसार विक्रमशिला सेतु की हालत बहुत अच्छी नहीं है। भागलपुर की ओर इस सेतु के दो पायों में दरार ही नहीं, बल्कि एकाध पाये टेढ़े प्रतीत हो रहे हैं। यही वजह है कि जहां पाये टेढ़े हैं उस जगह से वाहनों के गुजरने पर उछाल महसूस होती है। इस पुल पर भारी वाहनों खासकर ओवरलोड वाहनों के परिचालन से खतरा बढ़ सकता है।

वहीं अक्टूबर 2017 में 15 करोड़ खर्च कर बाल वियरिग, एक्सपेंशन ज्वाइंट आदि बदलने के साथ ही खोदकर नए सिरे से सड़क बनाई थी। चार करोड़ खर्च कर साढ़े चार किलोमीटर सड़क में मास्टिक बिछाई गई थी। मरम्मत कराने वाली एजेंसी मुंबई की रिबिल्ड स्ट्रक्ट एसोसिएट के अभियंता धर्मेंद्र यादव ने 14-15 साल तक पुल में कुछ खराबी नहीं आने और मास्टिक एसफाल्ट बिछाने से सात-आठ साल तक सड़क टिकाऊ होने का दावा किया था। 

वहीं अभियंता के दावे की तब हवा निकल गई जब एक साल बाद ही सेतु की सड़क को मरम्मत की दरकार पड़ गई। पाया संख्या तीन और चार में दरार पड़ गई हैं। चार जगहों में रेलिग क्षतिग्रस्त हो चुकी है। सड़क जर्जर हो चुकी है। जर्जर हो चुके इस सेतु को फिर से मरम्मत की दरकार पड़ गई है। पुल निर्माण के अधिकारियों द्वारा विशेषज्ञयों से पिलरों की जांच भी कराई गई। विशेषज्ञयों द्वारा जल्द पायों की मरम्मत कराने की बात कही गई। 

वहीं लेकिन अब तक इस दिशा में पुल निर्माण निगम की ओर से कोई पहल नहीं की जा सकी है। पुल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने की बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है। इसलिए इसके समानांतर फोरलेन पुल का निर्माण जल्द होना जरूरी ही नहीं, बल्कि अतिआवश्यक भी हो गया है। नया पुल बनने पर पुराने विक्रमशिला सेतु को तोड़ने की भी योजना है।

वहीं पुल निर्माण निगम के अधिकारियों का कहना है कि इस सेतु पर क्षमता से अत्यधिक लोड वाहनों का परिचालन होता है। वाहन सहित 40-50 टन की जगह 65-70 टन लोडेड वाहनों के चलने की वजह से ही पुल को नुकसान पहुंचा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि पायों में दरार की विशेषज्ञों से जांच कराई गई है। कंसलटेंसी की टीम की जांच कराने के बाद एनआइटी या फिर आइआइटी विशेषज्ञों से जांच कराने की अब जरूरत भी नहीं है। 

वहीं विशेषज्ञों ने पायों के दुरुस्तीकरण कराने की बात कही है। आठ महीने पहले मरम्मत संबंधी भेजे गए प्रस्ताव को अबतक मुख्यालय से स्वीकृति नहीं मिली है। मुख्यालय से स्वीकृति मिलने पर मरम्मत कार्य शुरू कराया जाएगा। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि कहीं कहीं एक्सपेंशन ज्वांइट के ऊपर-नीचे होने के कारण भी उछाल महसूस होती है। सेतु की सड़क और तीन-चार जगहों में क्षतिग्रस्त रेलिग की भी मरम्मत कराई जाएगी। 

वहीं इधर, पुल की मरम्मत कराने का मामला दो विभागों पुल निर्माण निगम और एनएच विभाग के बीच उलझ गया है। पुल निर्माण निगम के वरीय परियोजना अभियंता द्वारा यह कहते हुए सेतु की मरम्मत कराने से पल्ला झाड़ लिया था कि चूंकि भागलपुर जीरोमाइल से नवगछिया जीरोमाइल तक सेतु के पहुंच पथ को भूतल सड़क एवं परिवहन मंत्रालय से एनएच-133 बी घोषित किया गया है। 10.5 किलोमीटर सड़क को एनएच का दर्जा मिल चुका है। वर्तमान सड़क का रखरखाव कि जिम्मेदारी पथ निर्माण विभाग के पास है। 

वहीं 2024 तक ओपीआरएमसी योजना में है, जबकि इस पुल की जिम्मेदारी पुल निर्माण निगम की सौंपी गई थी। 2017 में 15 करोड़ की लागत से इस पुल की मरम्मत कराई गई थी। मुंबई के ठीका एजेंसी का एकरारनामा समाप्त होने के कारण अब उक्त एजेंसी से काम नहीं लिया जा सकता है। 

वहीं इसलिए अब इस पुल की देखरेख एनएच विभाग को करने की आवश्यकता है। इधर, एनएच विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पथ निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख ने पुल निर्माण निगम को अगले आदेश तक यानी फोरलेन पुल निर्माण होने तक इस सेतु देखरेख करने का निर्देश दिया है।