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नई दिल्ली : राजधानी में केजरीवाल ने कहा कि 75 प्रतिशत उपभोक्ताओं के घरों में बिजली बिल आ रहे हैं शून्य।

नई दिल्ली : राजधानी में केजरीवाल ने कहा कि 75 प्रतिशत उपभोक्ताओं के घरों में बिजली बिल आ रहे हैं शून्य।


नई दिल्ली। शून्य बिजली बिल योजना के लिए दिल्ली सरकार ने इस वर्ष बजट में 3,250 करोड़ रुपये का प्रविधान किया है। वर्ष 2015-16 में जब यह योजना शुरू की गई थी उस समय सब्सिडी पर सरकार को 1200 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा था। इस तरह से सात वर्षों में सब्सिडी की राशि 2050 करोड़ रुपये बढ़ गई है। वैकल्पिक सब्सिडी की घोषणा से इस मद में होने वाले खर्च में कमी आने की उम्मीद है।

वहीं आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने वर्ष 2015 में प्रति माह दो सौ यूनिट बिजली की खपत करने वाले उपभोक्ताओं के लिए शून्य बिजली बिल योजना शुरू की थी। वहीं, 201 से 400 यूनिट तक बिजली की मासिक खपत करने वाले उपभोक्ताओं को भी बिजली बिल में 50 प्रतिशत छूट दी जाती है। इस तरह के उपभोक्ता बिजली बिल पर प्रति माह आठ सौ रुपये तक की सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं। दिल्ली में लगभग 75 प्रतिशत उपभोक्ताओं के घरों में बिजली बिल शून्य आ रहे हैं।

वहीं बीते वर्ष 2019 में मुफ्त बिजली योजना को राजधानी में रहने वाले किरायेदारों तक बढ़ा दिया गया है। दिल्ली में लगभग 64 लाख घरेलू उपभोक्ता हैं। इनमें से 48 लाख से ज्यादा परिवारों के बिजली के बिल शून्य आ रहे हैं। 1984 के सिख विरोधी दंगे के पीडि़तों को प्रति माह चार सौ यूनिट बिजली पर 100 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। दिल्ली के सभी कृषि उपभोक्ताओं को बिजली कनेक्शन पर सब्सिडी मिलती है।

वहीं दिल्ली में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले दस वर्षों में लगभग 21 लाख बिजली उपभोक्ता बढ़ गए हैं। दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2011-12 में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या 43.01 लाख थी और वर्ष 2020-21 में यह बढ़कर 63.87 लाख हो गई। उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने के साथ ही बिजली की खपत भी बढ़ी है। पिछले दस वर्षों में मांग लगभग 1400 मेगावाट की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2011-12 में अधिकतम मांग 5028 मेगावाट थी।

वहीं, वर्ष 2018 से ही अधिकतम मांग सात हजार मेगावाट के ऊपर है। वर्ष 2019 में अधिकतम 7409 मेगावाट तक पहुंच गई है। हालांकि, लाकडाउन की वजह से वर्ष 2020-21 में अधिकतम मांग मात्र 6314 मेगावाट रही थी। पिछले साल गर्मी में बिजली की अधिकतम मांग फिर से सात हजार मेगावाट के ऊपर पहुंच गई थी।