घर जाने के लिए ये लोग प्रशासन की ओर से चलाई गई बस के अंदर ही नहीं बसों के ऊपर भी चढ़ गए हैं. इन्हें  किसी तरह घर पहुंचने की जल्दी है. गुजरात से आये प्रवासियों का कहना है कि उन्हें गुजरात या बिहार सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली. यहां तक कि उनसे सफर के लिए पैसे भी मांगे गए और टिकट के नाम पर एक टोकन पकड़ा दिया गया. रास्ते में इन लोगों को कुछ खाने को भी नहीं मिला. स्थानीय प्रशासन रात 12 बजे से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से आये यात्रियों को उनके गृह जिले की ओर भेज रहा है. सवाल यह है कि अगर इस तरह से बसों की छत पर ये लोग बैठकर जाएंगे तो अगर कोई दुर्घटना हुई तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? वहीं अगर इनमें से एक भी कोरोना पॉजिटिव हुआ तो बाकी लोगों का क्या होगा?