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काशी के घर-घर की तिरंगी बर्फी और काशीपुरा की ढलुआ मूर्ति हुई जीआई टैग में हुई शामिल...

काशी के घर-घर की तिरंगी बर्फी और काशीपुरा की ढलुआ मूर्ति हुई जीआई टैग में हुई शामिल...

काशी के पक्के महाल से निकली बनारसी तिरंगी बर्फी और काशीपुरा की गलियों की शान ढलुआ मूर्ति को जीआई टैग मिल गया है। दो नए उत्पादों के साथ काशी क्षेत्र में अब कुल 34 जीआई उत्पाद हो गए हैं। इसके साथ ही दुनिया में सर्वाधिक विविधता और जीआई टैग का हब काशी क्षेत्र बन गया है।

जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बताया कि बनारसी तिरंगी बर्फी काशी की खास पहचान है। केसरिया, सफेद और हरे रंग की ये बर्फी पक्का महाल की गलियों में बड़े चाव से खाई जाती है। इस बनाने में केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और बीच के सफेद रंग के लिए खोवा, काजू का इस्तेमाल किया जाता है।

आजादी आंदोलन के क्रांतिकारी इसी तिरंगा मिठाई को आजादी के पहले ही इजाद की   

कहा जाता है कि आजादी के आंदोलन में शामिल क्रांतिकारी खुफिया बैठकों में इसी बर्फी को तरजीह देते थे। बड़े चाव से खाते थे। वहीं, काशीपुरा की गलियों में सैकड़ों साल से बनारस ढलुआ शिल्प में ठोस छोटी मूर्तियां बनाई जा रही है। ढलुआ शिल्प में मां अन्नपूर्णा, लक्ष्मी-गणेश, दुर्गा, हनुमान विभिन्न प्रकार के यंत्र, नक्सीदार घंटी-घंटा, सिंहासन, आचमनी पंचपात्र व सिक्कों की ढलाई वाले सील ज्यादा मशहूर हैं।

उत्तर प्रदेश में 75 जीआई उत्पादों का वादा पूरा

ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के विनोद कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि दो नए पंजीकरण के साथ काशी क्षेत्र में 34 जीआई टैग के साथ ही उत्तर प्रदेश में कुल 75 जीआई टैग का वादा पूरा हुआ। उत्तर प्रदेश में 58 हस्तशिल्प उत्पादों और 17 कृषि व खाद्य उत्पादों को जीआई पंजीकरण मिल चुका है। इस उपलब्धि पर शिल्पियों और उद्यमियों समेत निर्यातकों ने खुशी जताई है।