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मेडे, मेडे, मेडे बोला... पायलट के पास इतना ही कहने का वक्त था, पर ये होता क्या है? जानें...

मेडे, मेडे, मेडे बोला... पायलट के पास इतना ही कहने का वक्त था, पर ये होता क्या है? जानें...

अहमदाबाद प्लेन क्रैश (Ahmedabad Plane Crash) को लेकर एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि बस कुछ सेकंड में ही 241 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. इससे एक और बात स्पष्ट हो जाती है कि प्लेन के पायलट या क्रू मेंबर्स के पास बचाव या सुरक्षा के लिए महज कुछ सेकेंड का ही वक्त था। इतने कम समय में क्या किया जा सकता था? मुश्किल से एक MAYDAY कॉल. यानी कि एयर ट्रैफिक कॉल (ATC) को फोन करके बताना कि प्लेन किसी इमरजेंसी की स्थिति में है और अब उसे संभाल पाना मुश्किल है।

लेकिन ये बताने के लिए कि प्लेन किस तरह की दिक्कत में है या उसकी किस तरह से मदद की जा सकती है, कुछ सेकेंड का समय काफी नहीं है. कई एविएशन एक्सपर्ट ने कहा है, एयर इंडिया की फ्लाइट AI171 के कैप्टन ने 'एयरक्राफ्ट कम्युनिकेशन एड्रेसिंग एंड रिपोर्टिंग सिस्टम' (ACARS) को एक मैसेज भेजा था. दावे के अनुसार, कैप्टन ने पावर फेल होने की जानकारी दी थी।

प्लेन के बाहर से घटना के जो वीडियो रिकॉर्ड किए गए हैं, उनसे पता चलता है कि उड़ान भरने के कुछ सेकंड के भीतर ही प्लेन में आग लग गई थी. और अगले चंद सेकेंड में धमाका हुआ और फिर प्लेन क्रैश. ऐसे में प्लेन की कमान संभाल रहे कैप्टन सुमित सभरवाल के लिए कोई स्पष्ट मैसेज भेज पाना मुश्किल लगता है. इतने कम समय में कैप्टन बस एक MAYDAY कॉल कर सकते थे, जो उन्होंने किया।

MAYDAY, MAYDAY, MAYDAY…

ATC को जैसे ही ये शब्द तीन बार सुनाई देता है, इसका मतलब होता है कि जिस प्लेन से ये आवाज आ रही है वो संकट की स्थिति में है. मतलब खतरा इस स्तर का है कि पायलट के पास अपनी स्थिति समझाने का भी समय नहीं है. उसके पास जितना वक्त है, उसमें वो बस इतना ही कह सकता है, 'मेडे, मेडे, मेडे'.

ये 'डिस्ट्रेस कॉल' होता है यानी की संकट की जानकारी देना. पायलट या कैप्टन इसका इस्तेमाल तब करते हैं, जब उनका या पैसैंजर्स का जीवन खतरे में होता है और उन्हें मदद की जरूरत होती है. इस 'डिस्ट्रेस कॉल' को पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है. यानी कि दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई प्लेन अगर संकट की किसी स्थिति में है और उसके पास कम समय है, तो वो मेडे का इस्तेमाल करते हैं।

इंजन फेल होने पर, आग लगने पर या ऐसी मेडिकल इमरजेंसी जो उड़ान को खतरे में डाल सकता है… इन स्थितियों में मेडे कॉल किया जाता है।

मेडे को MAYDAY कहते क्यों हैं?

साल 1920 में लंदन के क्रॉडॉन एयरपोर्ट पर रेडियो ऑफिसर फ्रेडरिक स्टैनली मॉकफोर्ड ने सबसे पहले मेडे कॉल किया था. फ्रेंच में एक शब्द है, m'aider, जिसका मतलब है, 'मेरी मदद करो'. इसी शब्द का इस्तेमाल करके उन्होंने MAYDAY शब्द बनाया।

ऑफिसर फ्रेडरिक ने ये शब्द इसलिए चुना क्योंकि उस समय एविएशन रेडियो ट्रैफिक में ज्यादातर अंग्रेजी और फ्रेंच बोलने वाले थे. इसलिए उन्होंने अंग्रेजी और फ्रेंच को मिलाकर ये शब्द गढ़ा। इसके कुछ और कारण भी हैं-

* अंग्रेजी और फ्रेंच बोलने वाले लोग इसे आसानी से समझ सकते हैं।
* रेडियो प्रसारण पर दूसरे शब्दों के साथ कंफ्यूजन पैदा नहीं होता।
* तनावपूर्ण या शोर की स्थिति में भी इसे कहना और पहचानना आसान है।

MAYDAY ही क्यों बोलते हैं?

मेडे, मेडे, मेडे… तीन बार. यही स्टैंडर्ड तरीका है. ये बताने का कि प्लेन और लोगों का जीवन संकट में है. ऐसा इसलिए ताकि कोई कंफ्यूजन या कोई गलतफहमी न हो. इन तीन शब्दों के बाद बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि खतरे ने दस्तक दे दी है।

मेडे कॉल के बाद क्या? - इसके बाद कॉल साइन, जगह, संकट किस तरह का है और किस तरह की मदद की जरूरत है… ये सब पता लगाया जाता है।

कुछ और शब्द भी हैं जिनका इस्तेमाल संकट की स्थिति में किया जाता है. मेडे इन सबमें सबसे विकट स्थिति की सूचना देता है. अन्य शब्द हैं।

पैन-पैन:ऐसी स्थिति जिसमें तुरंत ही जीवन का खतरा नहीं है. या कोई मशीनी दिक्कत है जिससे उड़ान को तुरंत ही समस्या नहीं है।

SOS: ये मोर्स कोड की तरह होता है. मोर्स कोड में डॉट्स (.) और डैश (-) की मदद से अक्षरों को भेजा जाता है. इसका इस्तेमाल समुद्री जहाजों या पुरानी संचार व्यवस्थाओं में किया जाता है।

मेडिकल हॉस्टल पर गिरा विमान

12 जून को अहमदाबाद एयरपोर्ट से उड़ान भरने के बाद एयर इंडिया का ये प्लेन क्रैश हो गया. इसमें कुल 242 लोग थे, 230 पैसेंजर्स और 2 पायलट समेत 12 क्रू मेंबर्स. एयरपोर्ट के पास एक मेडिकल कॉलेज का हॉस्टल था. प्लेन उसी हॉस्टल पर गिरा. वहां भी कुछ लोगों की जान चली गई. अब तक कुल 265 शवों की पुष्टि हुई है।