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मंदिर में देवी प्रतिमा के सामने पायजामा खोलकर खड़ा हो गया मोइद्दीन, करने लगा अश्लील हरकतें,,,।

मंदिर में देवी प्रतिमा के सामने पायजामा खोलकर खड़ा हो गया मोइद्दीन, करने लगा अश्लील हरकतें,,,।


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एजेंसी डेस्क : (पटना, ब्यूरो)।बिहार के मुजफ्फरपुर से एक ऐसा मामला सामने आया है, कि जिसपर सांप्रदायिक बवाल मच सकता है। यहाँ नगर थाना के कल्याणी चौक पर स्थित धार्मिक स्थल (हनुमान मंदिर) को एक युवक ने अपवित्र कर दिया।

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घटना शनिवार शाम की बताई जा रही है। आरोपी युवक को जब पुजारी ने रोकने की कोशिश की, तो वह हाथापाई करने लगा। जैसे ही भीड़ एकत्र हुई,तोआरोपी युवक भाग निकला, इसके बाद भीड़ ने आरोपी युवक का पीछा किया और उसके घर तक जा पहुंची और जमकर पिटाई कर दी घटना कि सूचना मिलते टाउन थाना पुलिस ने आरोपी युवक को अर्रेस्ट कर उपचार के लिए सदर अस्पताल में भर्ती कराया है।


वहीं मंदिर के पुजारी पंडित विरेंद्र ठाकुर ने मीडिया को जानकारी दी है कि, 'एक मुस्लिम युवक मंदिर में चप्पल जूता पहनकर घुस आया था। हमने उसे बाहर जाने को कहा तो वह मारपीट करने लगा और पायजामा खोल कर देवी की प्रतिमा के सामने खड़ा हो गया। यहां एक ही साथ कई मंदिर है उसने दूसरे मंदिर में जाकर पेशाब कर दी। काफी जद्दोजहद के बाद उसको बाहर निकाला गया है, फिर पुलिस उठा कर उसको ले गई.' घटना को लेकर लोगों में जबरदस्त गुस्सा है

युवक की शिनाख्त कल्याणी बाड़ा दीवान रोड निवासी मोहमद मोइद्दीन के रूप में हुई है, आरोपी युवक की गिरफ्तारी के बाद पुलिस मंदिर के इलाके में गश्त कर रही है और यहां स्थिति समान्य हैं। 

इस मामले में नगर थानेदार राम सिंह ने बताया है कि, धार्मिक स्थल को अपवित्र करने वाले युवक को हिरासत में लिया गया है और उससे पूछताछ की जा रही है। उन्होंने बताया कि अब तक की जांच में उसके साथ किसी अन्य के होने का सबूत नहीं मिला है और घटना स्थल व आसपास के क्षेत्रों में पुलिस की तैनाती बढ़ा दी गई है। 

हालाँकि, इस घटना को देखने के बाद एक बार फिर वही सवाल उठता है कि, यही घटना यदि किसी दूसरे धर्मस्थल में होती तो क्या वो युवक जिन्दा भी बच पाता ? क्योंकि, हमने किसान आंदोलन के दौरान बेअदबी के मामले में एक व्यक्ति की हाथ-पैर कटी लाश देखी है, केवल सोशल मीडिया पर पोस्ट के कारण कन्हैयालाल उमेश कोल्हे, हर्षा जैसे लोगों की नृशंस हत्या देखी है, सड़कों पर खुलेआम सर तन से जुदा के नारे लगते देखे हैं। 

सवाल यही बना हुआ है कि, यदि बहुसंख्यक होने पर भी हिन्दू इतना सहनशील है, तो इसका नाज़ायज़ फायदा कब तक उठाया जाएगा ?