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बड़ी खबर::वाराणसी : अब सरकार की हुई आईजी रेंज कार्यालय और आवास की जमीन, 54 साल से एक परिवार वसूल रहा था किराया,,,।

एजेंसी डेस्क::(वाराणसी,ब्यूरो)।वाराणसी में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद पुलिस महानिरीक्षक परिक्षेत्र (आईजी रेंज) कार्यालय और,आवास की 0.393 हेक्टेयर जमीन उत्तर प्रदेश सरकार के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज करने का आदेश हुआ है। यह आदेश अपर उप जिलाधिकारी सदर डॉ. ज्ञान प्रकाश की अदालत ने दिया।
अदालत ने राजादरवाजा निवासी दिवंगत आनंद अग्रवाल, उनके वारिस गुंजन अग्रवाल, मवैया की रहने वाली स्मिता गोपाल व इला अग्रवाल का नाम आईजी रेंज कार्यालय और आवास से संबंधित जमीन से निरस्त करने का आदेश भी पारित किया है। इसका अनुपालन करते हुए राजस्व व नगर निगम के दस्तावेजों में जमीन राज्य सरकार के नाम से दर्ज कर दी गई है।
खजुरी मौजा स्थित डीआईजी कॉलोनी में वाराणसी परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक का कार्यालय और आवास वर्ष 1902 से अस्तित्व में है। वर्तमान में यहां वाराणसी रेंज के आईजी का कार्यालय और आवास है। इस आराजी से संबंधित नगर निगम के दस्तावेजों में आनंद अग्रवाल का नाम वर्ष 1969 से दर्ज था। इस वजह से वह सरकार से किराया लेते थे।
नौ अक्तूबर 2019 को आनंद अग्रवाल की मौत हो गई। इसके बाद जमीन उनके वारिसों के नाम दर्ज हो गई। तथ्यों और साक्ष्य काअवलोकन करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि, आईजी रेंज कार्यालय और आवास से संबंधित जमीन पर दिवंगत आनंद अग्रवाल और उनके वारिसों का कोई अधिकार नहीं है। कानून के जानकारों का कहना है कि अब पुलिस प्रशासन किराये के तौर पर ली गई धनराशि की रिकवरी कर सकता है।
जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व अशोक वर्मा ने कहा कि गुमराह करके शासन से किराया वसूला जा रहा था। अब पुलिस प्रशासन रिकवरी का नोटिस भेज सकता है। आईजी रेंज कार्यालय व आवास की जमीन राज्य सरकार की है, यह अदालत के आदेश के साथ ही तय हो गया।
एक ही मकान नंबर पर दो लोगों के नाम,,,,,,,
प्रदेश सरकार के विशेष अधिवक्ता अश्वनी कुमार के मुताबिक, आईजी रेंज कार्यालय और आवास से संबंधित जमीन का किराया बढ़ाने के लिए आनंद अग्रवाल ने मुकदमा दाखिल किया था। प्रदेश सरकार ने इसे गंभीरता से लिया। मामले की प्रभावी पैरवी शुरू की गई। पड़ताल में वर्ष 2016 में पता चला कि भवन संख्या - 8/108 एच-3 के मालिक के तौर पर नगर निगम में आनंद अग्रवाल के साथ ही रमाकांत तिवारी का नाम दर्ज है।
नगर निगम की इसी गलती का फायदा आनंद अग्रवाल ने उठाया और जमीन अपने नाम करा ली। जबकि, गाटा संख्या 93 औसानगंज के चैरिटेबल ट्रस्ट की जमीन है। इस गाटा की जमीन के संबंध में जितने भी विक्रय हुए हैं, वे सभी अवैध हैं। यहीं से प्रकरण की गुत्थी सुलझती चली गई। अब तथ्यों व साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है।
क्षेत्राधिकारी कोतवाली ने दी थी रिपोर्ट,,,,,,,
क्षेत्राधिकारी कोतवाली ने आईजी रेंज कार्यालय और आवास की जमीन के नामांतरण की कार्रवाई के संबंध में 9 जून 2016 को एसडीएम सदर को पत्र भेजा था। क्षेत्राधिकारी ने कहा था कि आईजी रेंज कार्यालय और आवास की जमीन ट्रस्ट की है। यह जमीन कोर्ट ऑफ वार्ड्स एक्ट के अधीन है। लिहाजा, सार्वजनिक न्यास की संपत्ति को बेचने का अधिकार किसी को नहीं है।
संपत्ति खरीदने का था दावा,,,,,,,
औसानगंज इस्टेट की संपत्तियों के संबंध में रानी राम कुंवरी ने कोर्ट ऑफ वार्ड्स एक्ट के तहत एक ट्रस्ट डीड 30 अप्रैल 1937 को तैयार कराई थी। 6 अप्रैल 1938 को रानी राम कुंवरी की मृत्यु के बाद कुंवर केदार नरायण सिंह ने संपत्तियों के नामांतरण के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। प्रार्थना पत्र के संबंध में जनक नंदिनी कुंवरी ने आपत्ति जताई।
22 दिसंबर 1939 को तत्कालीन असिस्टेंट कलेक्टर एमए कादिर ने आदेश दिया था कि जनक नंदन कुंवरी की हैसियत औसानगंज इस्टेट की संपत्तियों के संबंध में प्रबंधक की हो सकती है, लेकिन वह विधिक उत्तराधिकारी नहीं हैं। वहीं, आनंद अग्रवाल का कहना था कि एक फरवरी 1969 को उन्होंने जनक नंदनी कुंवरी से आईजी रेंज कार्यालय और आवास से संबंधित जमीन खरीदी थी।
अधिवक्ता अश्वनी कुमार की दलील थी कि पहले के आदेश के अनुसार जब जनक नंदन कुंवरी की हैसियत विधिक उत्तराधिकारी की थी ही नहीं तो वह जमीन कैसे बेच सकती थीं। जब कोई ट्रस्ट कार्यरत नहीं रहता है या कार्यरत रहने की दशा में उद्देश्यों से भटक जाता है तो उसकी संपत्ति शासन में निहित मानी जाती है। इसका जिक्र चैरिटेबल इंडोमेंट एक्ट की धारा चार में है।