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ग्वालियर में साल में एक दिन आज ही के दिन कार्तिक पूर्णिमा को भगवान कार्तिकेय मंदिर के खुलते हैं पट,,,।

ग्वालियर में साल में एक दिन आज ही के दिन कार्तिक पूर्णिमा को भगवान कार्तिकेय मंदिर के खुलते हैं पट,,,।


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एजेंसी डेस्क : (केसरी न्यूज प्रतिनिधि), जीवाजी गंज पुल के पास स्थित भगवान कार्तिकेय के मंदिर के वर्ष में केवल एक दिन (कार्तिक पूर्णिमा) को पट खुलते हैं।आज रात 12 बजे मंदिर के गर्भग्रह का ताला खोला गया। भगवान कार्तिकेय का श्रृंगार शुरु हुआ। 

भगवान कार्तिकेय अपने भक्तजनों और श्रद्धालुओं को मंगलवार की तड़के से दर्शन देकर उनकी सभी मनोकामनाएं पू्र्ण करेंगे। यह मंदिर 400 वर्ष प्राचीन है। वृद्ध जमुना प्रसाद शर्मा की छठवीं पीढ़ी इस मंदिर की सेवा कर रही है। 

भगवान कार्तिकेय की मूर्ति की स्थापना स्वर्ण रेखा नदी( वर्तमान में नाला)के किनारे साधु-संतों ने प्राण प्रतिष्ठा की थी। माना जाता है कि प्रदेश में भगवान कार्तिकेय का इकलौता मंदिर है।

जन्मदिन पर देते हैं भक्तों को दर्शन,,,,,

देवाधि महादेव के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय का प्राकट्य कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय ऐसे एक मात्र देवता है, जो कि साल में एक बार भक्तों को दर्शन देते हैं। सालभर तक इनके मंदिर के पट बंद रहते हैं। मंगलवार को चंद्रग्रहण के कारण कार्तिक पूर्णिमा सोमवार को मनाई जा रही है। इसलिए रविवार की रात 12 बजे मंदिर के गर्भग्रह का ताला खोलकर साफ-सफाई कर भगवान कार्तिकेय का अभिषेक कर विशेष श्रृंगार किया गया। तड़के से भगवान कार्तिकेय को अपने भक्तों को अपने वाहन मोर पर सवार होकर दर्शन देंगे।

बड़ा ही सुंदर स्थान था लेकिन,,,,,

मंदिर के वृद्ध पूजारी जमुना प्रसाद शर्मा ने बताया कि वर्षों पहले मंदिर का आसपास का दृश्य काफी सुंदर था। चारों तरफ खेत व जंगल था। मंदिर के किनारे स्वर्ण रेखा नदी में स्वच्छ जल बहता था। अब यह नदी गंदे नाले में तब्दील हो गई है। उनकी छठवी पीढ़ी मंदिर की सेवा कर रही है। उनके परदादा इस मंदिर की पूजा-अर्चना करते थे। वे भी संत थे। गाय के मूत्र रंगे से वस्त्र ही पहनते थे।

इसलिये साल में एक दिन दर्शन देते हैं भगवान कार्तिकेय,,,,,

पूजारी जमुना प्रसाद शर्मा ने मीडिया को बताया कि वर्ष में केवल एक दिन भगवान कार्तिकेय के उनके प्रकाट्य दिवस पर कार्तिक पूर्णिमा को पट खोले जाने की वृतांत सुनाते हुये बताते हैं कि, भगवान शिव व माता पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय व गणेश के सामने शर्त रखी, जो ब्रह्राण्ड के परिक्रम लगाकर सबसे पहले लौटेगा, उसका विवाह पहले किया जाएगा। भगवान कार्तिकेय अपने वाहन पर सवार होकर परिक्रम करने के लिये निकल गये। गणेश बुद्धिमान थे। माता-पिता की परिक्रमा कर सामने बैठ गये। उनका विवाह हो गया। नारद मुनि से जब भगवान कार्तिकेय को इसका पता चला कि वह नाराज हो गये। माता-पिता उन्हें मनाने के लिये आये तो उन्होंने श्राप दिया कि जो भी उनके दर्शन करेगा सात जन्मों तक नरक भोगेगा। माता-पिता के मनाने पर उनका गुस्सा शांत हुआ। उन्होंने शांत होने के बाद वरदान दिया कि उनके जन्मदिन पर जो भी भक्त उनके दर्शन कर पूजा-अर्चना करेगा। उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगें। तभी से भगवान कार्तिकेय साल में एक दिन भक्तों को दर्शन देते हैं।