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वाराणसी : शारदीय नवरात्र : पांचवा दिन,,, बुद्धि, वात्सल्य और प्रेम की मूर्ति स्कंदमाता के दरबार में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ जैतपुरा स्थित बागेश्वरी देवी का आज हो रहा दर्शन

वाराणसी : शारदीय नवरात्र : पांचवा दिन,,, बुद्धि, वात्सल्य और प्रेम की मूर्ति स्कंदमाता के दरबार में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ जैतपुरा स्थित बागेश्वरी देवी का आज हो रहा दर्शन




एजेंसी डेस्क
स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है, उपासना से साधक को अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद माता अपने साधकों को देती हैं। 

वाराणसी, 30 सितम्बर। शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन शुक्रवार को जैतपुरा बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर स्थित स्कंदमाता दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।खास बात यह रही कि भक्तों की भीड़ में युवा विद्वयार्थियों ने हाजिरी लगाकर माता से कामना की।

माता के मंदिर में भोर से ही दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु कतारबद्ध होने लगे थे। रात तीन बजे के बाद माता रानी का श्रृंगार और मंगला आरती कर पट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। दरबार में देवी मां की एक झलक पाकर श्रद्धालु निहाल हो गये। इस दौरान पूरे परिसर में माता रानी का जयकारा गूंजता रहा। माता के दर्शन के लिए लंबी लाइन में लगे लोगों में से मुन्ना, रिशु, दिलीप, आदित्य ने वरिष्ठ संवाददाता एके केसरी को बताया कि हम लोग सुबह से ही लाइन में लगकर माता का दर्शन के लिए लालायित हैं हम सब क्षेत्रवासी पूरे 9 दिन यही माता का दर्शन पाकर निहाल होते हैं

मान्यता है कि माता रानी की कृपा से बुद्धि बढ़ती है। इसलिए मां के दरबार में बच्चों और युवाओं की भीड़ दर्शन पूजन के लिए उमड़ती है। मां दुर्गा का पंचम स्वरूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। 

भगवान स्कंद कुमार की माता होने के कारण मां को स्कंदमाता नाम प्राप्त हुआ है। मां कमल के पुष्प पर विराजमान हैं। इन्हें पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी उपासना से साधक को अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है। 

काशी खंड, स्कंद पुराण में देवी का भव्य रूप से वर्णन किया गया है। इनकी पूजा से बुद्धि, वात्सल्य और प्रेम की प्राप्ति होती है। स्कंद माता को वात्सल्य की मूर्ति भी कहा जाता है। मां अपने भक्तों के लिए मोक्ष के द्वार भी खोलती हैं। 

मां स्कंदमाता के साथ-साथ भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। स्कंद माता की चार भुजाएं हैं। माता दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं। 

उधर, पांचवें दिन नगर के अन्य देवी मंदिरोें, दुर्गाकुण्ड स्थित मां कूष्मांडा, 

मां संकठा मंदिर के करीब आत्माविशेश्वर मंदिर परिसर में मां कात्यायनी मंदिर, 

काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप कालिका गली स्थित काली मंदिर, 

मां अन्नपूर्णा मंदिर, 

गोलघर मैदागिन में सिद्धिमाता मंदिर, 

लक्सा स्थित महालक्ष्मी मंदिर,

भदैनी स्थित मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर   

लहुराबीर स्थित गायत्री माता मंदिर, 

शीतलाघाट स्थित शीतलादेवी, त्रिदेव मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन-पूजन के लिए जुटी रही।