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शारदीय नवरात्रि 2022 (दुर्गा प्रतिमा ): क्यों वेश्यालय की मिट्टी से बनाई जाती है मां दुर्गा की प्रतिमा? जानें क्या हैं इसके पीछे की मान्यताएं?

शारदीय नवरात्रि 2022 (दुर्गा प्रतिमा ): क्यों वेश्यालय की मिट्टी से बनाई जाती है मां दुर्गा की प्रतिमा? जानें क्या हैं इसके पीछे की मान्यताएं?



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देवी प्रतिमा पर विशेष लेख : :  चीफ एडिटर (ए,के,केसरी )

देवी भक्तों को शारदीय नवरात्रि की विशेष प्रतीक्षा रहती है, आश्विन मास की नवरात्रि में जहां खूबसूरत पंडालों में दुर्गा जी विराजती हैं, गुजरात एवं महाराष्ट्र में दांडिया और गरबा की धूम देखते ही बनती है।

कोलकाता की दुर्गा पूजा तो दिव्य ही होती है, हालांकि अब संपूर्ण भारत में दुर्गा पूजा की वही धूमधाम दिखने लगी है. यह पूजा षष्ठी से शुरू होकर नवमी तक चलती है, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार दुर्गा पूजा 1 अक्टूबर से 5 अक्टूबर तक मनाया जायेगा. दशमी के दिन सुहागिनों द्वारा सिंदूर-खेला के पश्चात दुर्गा जी की प्रतिमा किसी पवित्र सरोवर या नदियों में विसर्जित कर दी जाती है. लेकिन जिस आस्था, शिद्दत एवं पवित्र मन से हम दुर्गा जी की प्रतिमा की पूजा करते हैं, सुहागनें उनके साथ सिंदूर-खेला खेलती हैं, क्या आप जानते हैं, कि इस प्रतिमा में वेश्यालय की जमीन की मिट्टी मिली होती है. आखिर ऐसे क्यों होता है, आज हम इसी विषय पर बात करेंगे. 

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इन छह वस्तुओं से बनती है दुर्गा जी की प्रतिमा

दुर्गा जी की प्रतिमा बनाने वाले शिल्पकार छह माह पूर्व से ही प्रतिमा निर्माण की तैयारियां शुरू कर देते हैं. मूर्ति निर्माण के लिए मुख्य रूप से चार वस्तुओं की जरूरत होती है. ये हैं गंगा नदी की मिट्टी, गाय का गोबर, गोमूत्र, सिंदूर और किसी बड़े वेश्याघर के मुख्यद्वार की मिट्टी ।

सूत्रों के अनुसार मूर्ति बनाने में पुजारी को निषिद्धों पल्ली से पवित्र मिट्टी की जरूरत होती है. हैरानी की बात है कि जिस क्षेत्र में प्रवेश करना भी हम सबसे बड़ा पाप समझते हैं, पुण्य बटोरने के लिए उसी जगह की मिट्टी की हमें जरूरत होती हैं. आखिर ये कैसा विरोधाभास है? 

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मूर्ति के लिए वेश्यालय की ही मिट्टी क्यों?

माँ दुर्गा की प्रतिमा में प्रयुक्त होने वाली गंगा की मिट्टी, गाय का गोबर और गोमूत्र के बारे में जगविख्यात है कि ये पवित्र हैं, पावन है, लेकिन अधार्मिक माने जानेवाले वेश्याघर की मिट्टी का प्रयोग थोड़ा अजीब सा लगता है. जानकारों के अनुसार यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. हालांकि इसके पीछे कई मान्यताएं बताई जाती हैं. 

मान्यता नंबर-1 

शारदा तिलकम, महामंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि जैसे ग्रंथों में इस संदर्भ में एक रोचक कथा है. एक वेश्या जो माँ दुर्गा की अनन्य भक्त थी, वह दुर्गा जी की पूजा करने जब मंडप में पहुंची तो लोगों ने उसके पेशे को गंदा बताते हुए उसे पूजा से दूर रखा. इससे दुखी होकर वेश्या ने अपने ही आंगन की मिट्टी से माँ दुर्गा की प्रतिमा बनाकर पूजा की. माँ दुर्गा वेश्या की पूजा से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिया, और दुर्गा पूजा करने वाले उच्च समाज को बताया कि अब से जब तक वेश्याघर की मिट्टी हमारी प्रतिमा में नहीं प्रयोग की जायेगी, मैं तुम्हारी पूजा स्वीकार नहीं करूंगी. कहते हैं कि इसके बाद से ही यह परंपरा शुरू हुई. 

मान्यता नंबर-2

इसके पीछे एक वजह यह भी बताई जाती है कि जब कोई व्यक्ति वेश्यालय में प्रवेश करता है तो वह अपनी पवित्रता उस द्वार पर ही छोड़कर अंदर जाता है. कहने का आशय यह कि व्यक्ति के भीतर प्रवेश प्रवेश करने से उसके अच्छे कर्म और पवित्रता सब बाहर ही रह जाती हैं. इस तरह वेश्यालय के मुख्य द्वार के बाहर की मिट्टी भी पवित्र हो जाती है. इसलिए वहां की मिट्टी दुर्गा जी की प्रतिमा के निर्माण में इस्तेमाल की जाती है. 

मान्यता नं. -3

एक अन्य मान्यता के अनुसार वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को समाज से बहिष्कृत माना जाता है. इसलिए उन्हें पूजा से दूर रखा जाता था. एक रात माँ दुर्गा ने पुजारी से कहा कि आप मेरी मूर्ति के निर्माण के लिए स्वयं जाकर वेश्याघर वालों से मेरी प्रतिमा के लिए भीख में थोड़ी मिट्टी मांग कर लाएंगे. उसके बाद ही मेरी प्रतिमा की पूजा सार्थक होगी. पूर्व में पुजारी ऐसा करते थे, बाद में मूर्तिकारों ने भी यह जिम्मेदारी संभाल ली. आज मूर्तिकार ही वेश्यालयों में जाकर मिट्टी की भीख मांगते हैं और तब प्रतिमा तैयार की जाती है.

(लेख संकलन पीटीआई कोलकाता इकाई के सहयोग से)