Headlines
Loading...
ISRO SSLV Lunch Live Update :  अंतरिक्ष में भारत की नई उड़ान , इसरो ने श्री हरिकोटा से किया लांच , बच्चों की रंग लाई मेहनत

ISRO SSLV Lunch Live Update : अंतरिक्ष में भारत की नई उड़ान , इसरो ने श्री हरिकोटा से किया लांच , बच्चों की रंग लाई मेहनत


नई दिल्ली । भारत के पहले छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर इतिहास रच दिया. इसके लिए कल रात दो बजकर 26 मिनट पर उलटी गिनती शुरू की गई थी. यह SSLV एक पृथ्वी अवलोकन सैटेसाइट और छात्रों द्वारा बनाया एक उपग्रह लेकर जाएगा.


इसरो ने 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में 500 किलोमीटर तक स्थापित करने का मिशन शुरू किया है. उसका उद्देश्य तेजी से बढ़ते एसएसएलवी बाजार का बड़ा हिस्सा बनना है.


एसएसएलवी का उद्देश्य उपग्रह ईओएस-02 और आजादीसैट को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करना है. चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसएचएआर) के पहले लॉन्च पैड से सुबह नौ बजकर 18 मिनट पर रॉकेट प्रक्षेपित किया जाएगा.
प्रक्षेपण के करीब 13 मिनट बाद रॉकेट के इन दोनों उपग्रहों को निर्धारित कक्षा में स्थापित करने की उम्मीद है. अपने भरोसेमंद ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV), भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) के माध्यम से सफल अभियानों को अंजाम देने में एक खास जगह बनाने के बाद इसरो लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) से पहला प्रक्षेपण करेगा, जिसका उपयोग पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए किया जाएगा. इसरो के वैज्ञानिक ऐसे छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए पिछले कुछ समय से लघु प्रक्षेपण यान विकसित करने में लगे हुए हैं, जिनका वजन 500 किलोग्राम तक है और जिन्हें पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जा सकता है. SSLV 34 मीटर लंबा है जो PSLV से लगभग 10 मीटर कम है और PSLV के 2.8 मीटर की तुलना में इसका व्यास दो मीटर है. SSLV का उत्थापन द्रव्यमान 120 टन है, जबकि PSLV का 320 टन है, जो 1,800 किलोग्राम तक के उपकरण ले जा सकता है.
इसरो ने इंफ्रा-रेड बैंड्स में उन्नत ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपलब्ध कराने के लिए पृथ्वी अवलोकन उपग्रह का निर्माण किया है. EOS-02 अंतरिक्षयान की लघु उपग्रह श्रृंखला का सैटेलाइट है, 'आज़ादीसैट' में 75 अलग-अलग उपकरण हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 50 ग्राम है. देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन उपकरणों के निर्माण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा मार्गदर्शन प्रदान किया गया था जो 'स्पेस किड्स इंडिया' की छात्र टीम द्वारा एकीकृत हैं. 'स्पेस किड्ज इंडिया' द्वारा विकसित जमीनी प्रणाली का उपयोग इस उपग्रह से डेटा प्राप्त करने के लिए किया जाएगा.