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भारत में रोहिंग्या मुसलमान का " आधार " , घुसपैठ से लेकर ज़रूरी दस्तावेज़ कैसे करते हैं हासिल

भारत में रोहिंग्या मुसलमान का " आधार " , घुसपैठ से लेकर ज़रूरी दस्तावेज़ कैसे करते हैं हासिल

संपादकीय । म्यांमार की सीमा पर प्रहरियों से बचते हुए घने जंगलों से होकर हजारों की संख्या में रोहिंग्या मुसलमान उत्तर-पूर्वी राज्यों सिक्किम और मिजोरम से भारत के अंदरूनी हिस्सों का रुख कर चुके हैं और कर रहे हैं।

इन्हें रोकने के लिए काफी सख्ती बरती जा रही है, अलग-अलग जगहों पर गिरफ्तारियां भी होती रहती हैं। फिर भी सुरक्षा के लिए खतरा माने जाने वाले रोहिंग्या उत्तर-पूर्व से बंगाल, असम, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश होते हुए नेपाल सीमा तक पहुंच रहे हैं। यही नहीं, बंगाल से ट्रेन के माध्यम से देश की राजधानी दिल्ली और फिर वहां से पाकिस्तान की सीमा से सटे संवेदनशील जम्मू-कश्मीर तक डेरा डाल चुके हैं। रोहिंग्या के म्यांमार सीमा से भारत में प्रवेश के बाद विभिन्न राज्यों में उनके सुरक्षित ठिकानों, मददगारों और दूर के राज्यों तक पहुंचने के मार्ग व माध्यमों की पड़ताल करती की विशेष रिपोर्ट:


म्यांमार की 33 लाख आबादी में से रखाइन प्रांत में रोहिंग्या आबादी करीब 10 लाख से अधिक है। इनकी वंशावली अरबी, तुर्की, फारसी, मुगल, पठान, स्थानीय बंगाली व रखाइन से आती है। ये पाकिस्तान (2.5 से 3.5 लाख), सऊदी अरब (2.5 से 5 लाख), बांग्लादेश (2 से 5 लाख), मलेशिया (20 से 45 हजार) और थाईलैंड (तीन से 20 हजार) में भी बसे हैं।


अंग्रेजों ने 1824 से म्यांमार (तब बर्मा) पर राज किया और चावल उत्पादन के लिए दूसरे देशों से मजदूरों को म्यांमार भेजा। 17वीं शताब्दी में रोहिंग्या इसी नीति के तहत भारतीय उपमहाद्वीप के हिस्से (अब बांग्लादेश) से म्यांमार आए।


1962 में हालात बदले जब सेना ने सत्ता संभाली। इसके बाद लगातार सैन्य शासन में रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार शुरू हुए। 1971 में बांग्लादेश की आजादी की जंग में बड़ी संख्या में हजारों बांग्लादेशी म्यांमार गए। 1978 में म्यांमार सरकार ने शरणार्थियों को खदेड़ना शुरू किया। रोहिंग्या लोग बांग्लादेशी शरणार्थियों से काफी मिलते-जुलते थे इसलिए निशाने पर आए। अब म्यांमार में जुंटा यानी सैन्य सरकार होने के कारण एक बार फिर रोहिंग्या देश छोड़ रहे हैं और सिक्किम व मिजोरम से सीमा जुड़ी होने से भारत आ रहे हैं।


भारत में अपनी गहरी जड़ें जमा चुके रोहिंग्या मुसलमान यहां से जरूरी दस्तावेज भी हासिल कर लेते है। हर दस्तावेज के लिए कीमत भी तय है। मिली जानकारी के मुताबिक, निर्वाचन कार्ड के लिए पांच हजार रुपये, राशन कार्ड के लिए 10 हजार रुपये, आधार कार्ड के लिए 25 हजार रुपये, पासपोर्ट के लिए एक लाख रुपये तथा नेपाल पहुंचाने के लिए इनको 10 हजार रुपये देना पड़ता है।


उत्तराखंड से सटी नेपाल सीमा पर बसे रोहिंग्या बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा से होते हुए पश्चिम नेपाल तक पहुंच गए। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, 10 परिवार ऐसे हैं, जो बिहार की रक्सौल सीमा से करीब 1,236 किलोमीटर का सफर तय कर नेपाल में आबाद हो गए। जहां उन्हें इस्लामिक संघ नेपाल जैसे जिहादी गुटों से फंडिंग मिल रही है। उत्तराखंड से सटे नेपाली जिलों में 30 परिवारों ने तो आवास भी बना लिया है। गोरखपुर-बस्ती मंडल से सटे नेपाली क्षेत्रों में करीब 378 रोहिंग्या ने जमीन भी खरीद ली है। रोहिंग्या को सभी सुविधाएं मिल जा रही हैं। शुरुआत फर्जी निर्वाचन कार्ड बनवाने से होती है। रेट तय हैं।


बंगाल के कूचबिहार, मालदा, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, उत्तर दिनाजपुर और दक्षिण दिनाजपुर जिले में रोहिंग्या यहां के मुसलमानों के बीच छिपकर रहते हैं। दार्जिलिंग समेत अन्य जगहों पर दलालों के माध्यम से तीन-चार हजार रुपये में इन्हें फर्जी प्रमाण पत्र मिल जाते हैं। इस संबंध में आधिकारिक रूप से कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। असम के रास्ते ये दिल्ली, मुंबई आदि जाने के लिए उत्तर-पूर्व के कारिडोर सिलीगुड़ी का प्रयोग करते हैं। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, पिछले दो वर्ष में एक दर्जन से ज्यादा रोहिंग्या की गिरफ्तारी सिलीगुड़ी और आसपास के क्षेत्र में हो चुकी है। बीते 16 मार्च को रेलवे पुलिस ने सात रोहिंग्या को गिरफ्तार किया था। इन्हें ले जा रहे मु. जुबैर ने पूछताछ में बताया कि कंचनजंगा एक्सप्रेस से वह असम के कुमारघाट से सभी को दिल्ली ले जा रहा था। नौ फरवरी 2019 को सिलीगुड़ी के निकट खोरीबाड़ी क्षेत्र से छह रोहिंग्या को गिरफ्तार किया गया था। ये सभी म्यांमार के रास्ते भारत आए थे।


सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार बंगाल होते हुए बड़ी संख्या में रोहिंग्या बिहार के पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज के चोर रास्तों (खुली सीमा) से नेपाल पहुंचे हैं। इनकी पहली बड़ी खेप 2018-19 के मध्य यहां से गुजरी है।


राज्य में रोहिंग्या अपनी गहरी जड़ें जमा चुके हैं। जांच एजेंसियों की छानबीन में प्रदेश में 1,700 से अधिक रोहिंग्या के डेरा जमाने के तथ्य सामने आ चुके हैं। एटीएस विशेष तौर पर इनकी छानबीन कर रहा है और बीते दो वर्ष में ठेके पर रोहिंग्या को बांग्लादेशियों की घुसपैठ कराने वाले गिरोह पकड़े जा चुके हैं। फर्जी दस्तावेजों की सहायता से रोहिंग्या को भारत की सीमा में लाने के बाद पहले उनका संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचआरसी) में पंजीकरण कराया जाता है और फिर उन्हें अलग-अलग जिलों में पहचान बदलकर शरण दिलाई जाती है। सूबे में अलीगढ़, उन्नाव, आगरा, कानपुर, मथुरा व अन्य जिलों में वह बस गए हैं। खासकर, उन्हें मीट के कारखानों व सफाई के काम में लगाया जाता है। रोहिंग्या के थोड़े रुपयों के लालच में देश विरोधी गतिविधियों में आसानी से शामिल होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। भारत आने के बाद वह पहचान बदलकर खाड़ी देशों का भी रुख करते हैं। एडीजी कानून-व्यवस्था उप्र, प्रशांत कुमार ने बताया कि अब तक उत्तर प्रदेश में पहचान बदलकर रह रहे कई रोहिंग्या पकड़े जा चुके हैं। चूंकि ये आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं, लिहाजा इनके बारे में एटीएस गहनता से छानबीन कर रही है। इनकी घुसपैठ कराने वाले कई गिरोह की पड़ताल कराई जा रही है।


बंगाल से दिल्ली होते हुए हजारों रोहिंग्या जम्मू-कश्मीर में आ बसे हैं। सबसे ज्यादा रोहिंग्या जम्मू शहर के आसपास बसे हैं और इसे जम्मू की जनसांख्यिकी को बदलने की साजिश के तौर पर देखा जाता है। इसमें कई समाजसेवी संगठन और धर्म के नाम पर रोटिया सेंकने वाले सियासतदान परोक्ष रूप से जुड़े रहे हैं। रोहिंग्या कोलकाता के रास्ते दिल्ली और फिर वहां से ट्रेन में भर-भर कर जम्मू पहुंचे। यहां सक्रिय कुछ तत्व उनके लिए तुरंत रहने और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था कर देते हैं। जम्मू-कश्मीर प्रशासन के अनुसार, यहां म्यांमार व बांग्लादेश के 13,400 निवासी हैं। इनमें से 6,523 रोहिंग्या हैं। 6,461 जम्मू संभाग और 62 कश्मीर में हैं। इनके ठिकाने जम्मू, सांबा, डोडा, पुंछ व अनंतनाग में हैं। ये अपराध में भी सक्रिय हैं। बीते मार्च में किश्तवाड़, डोडा के संवेदनशील क्षेत्रों में सक्रिय कुछ रोहिंग्या पकड़े गए थे। जम्मू- कश्मीर हाई कोर्ट ने चार अप्रैल को छह सप्ताह के भीतर रोहिंग्याओं और घुसपैठियों की पहचान कर सूची बनाने को कहा है।


नेपाल जाने के लिए रोहिंग्या के लिए सबसे मुफीद गोरखपुर मंडल के महराजगंज जिले से लगी सीमा रही है। यहां छह जनवरी 2021 को चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। संतकबीरनगर जिले के समर्थन गांव में बसे रोहिंग्या अजीजुल्लाह को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद 28 फरवरी को अलीगढ़ के कमेला रोड पर रह रहे मुहम्मद फारुख और हसन को पकड़ा गया। फारुख का भाई शाहिद उन्नाव में रहता था, जिसे आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने एक मार्च को दबोचा। अजीजुल्लाह बंगाल से बिहार और फिर ट्रेन से गोरखपुर पहुंचा था। यहां करीब एक लाख रुपये में फर्जी पते पर पासपोर्ट बनवाया। उसकी तैयारी विदेश जाने की थी।


नेपाल सीमा से लगे अररिया, किशनगंज व सुपौल जिले के कुछ क्षेत्रों में रोहिंग्या मुसलमान प्रवेश कर चुके हैं। खुफिया विभाग के अधिकारी इस बात की पुष्टि करते हैं कि रोहिंग्या का प्रवेश इन क्षेत्रों में हो चुका है। हालांकि, प्रशासनिक अधिकारी इस बात को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, इन इलाकों का काफी दिनों से सामाजिक सर्वेक्षण भी नहीं किया गया है।


रोहिंग्या मुसलमानों के झारखंड के कई हिस्सों में रहने की खुफिया सूचनाएं पुलिस को मिलती रही हैं। गंभीरता से छानबीन हो तो हजारों रोहिंग्या मिल जाएंगे। अप्रैल 2020 में धनबाद के बैंक मोड़ क्षेत्र से तीन रोहिंग्या मुसलमानों की गिरफ्तारी हुई थी। खुफिया एजेंसी सक्रिय हुईं, लेकिन जांच आगे नहीं बढ़ी। लोहरदगा में भी दो वर्ष पहले राष्ट्रीय नागरिक पंजिका व नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में निकले जुलूस पर जानलेवा हमला, आगजनी व पथराव में भी बांग्लादेशी व रोहिंग्या के शामिल होने की आशंका थी। खुफिया एजेंसी की मानें तो बंगाल के मुर्शिदाबाद से झारखंड में रोहिंग्या का प्रवेश होता है। पापुलर फ्रंट आफ इंडिया से भी इन्हें संरक्षण मिलने की बात खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में है।


राष्ट्रीय राजधानी में कालिंदी कुंज के श्रम विहार में स्थित झुग्गियों में करीब 500 रोहिंग्या परिवार रहते हैं। यह संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। कई ने यमुना खादर में अपनी झुग्गियां बना रखी हैं। बहुत रोहिंग्या के पास शरणार्थी पहचान पत्र भी नहीं है। ये चोरी-छिपे सीमा पार करके विभिन्न राज्यों से होते हुए दिल्ली पहुंचे हैं। श्रम विहार स्थित रोहिंग्या कैंप में डेढ़ हजार से ज्यादा रोहिंग्या हैं। लूटपाट, झपटमारी समेत कई स्ट्रीट क्राइम में भी ये शामिल पाए गए हैं। अब मोलड़बंद एक्सटेंशन, हाजी मक्की मस्जिद कालोनी आदि क्षेत्रों तक ठिकाना बना लिया है।


बंगाल, बिहार के अलावा उप्र के वाराणसी, मेरठ, बिजनौर, बहराइच, गोरखपुर, संतकबीरनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बरेली में भी रोहिंग्या की मौजूदगी पाई गई है।