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स्वतंत्रता की जंगः काशी की गलियों से जुटाए गए थे विदेशी कपड़े, टाउनहॉल में लगाई गई आग

स्वतंत्रता की जंगः काशी की गलियों से जुटाए गए थे विदेशी कपड़े, टाउनहॉल में लगाई गई आग


विशेष लेख । आजादी की लड़ाई में बनारस के हिस्से राजा चेतसिंह के सिपहसालारों और नजरबंद अवध के नवाब वजीर अली के घुड़सवारों की क्रांति ही नहीं बल्कि आंदोलनों का भी लंबा इतिहास रहा है। 1921 के असहयोग आंदोलन के दौरान ही विदेशी वस्त्र बहिष्कार आंदोलन में भी बनारस न सिर्फ जोरशोर से जुड़ा बल्कि तमाम जगहों पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। 30 सितंबर 1921 को टाउनहाल में जली विदेशी वस्त्रों की होली उस वक्त शायद प्रदेश में सबसे बड़ा बहिष्कार था। 


विद्यापीठ में राजनीतिशासत्र विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो. सतीश राय बताते हैं कि गांधी जी ने 30 सितंबर तक विदेशी वस्त्रों के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया था। शहर में लगभग महीने भर से हलचल तेज हो गई। स्वयंसेवक गली-गली घूमकर विदेशी कपड़े जमा करने लगे और पुलिस ने उनकी धरपकड़ शुरू कर दी। इसके बाद इस अभियान में महिलाएं और किशोरवय बच्चे अगुवा बने। पुलिस ने एहतियातन विदेशी कपड़े बेचने वाली दुकानों के बाहर पिकेट तक लगा दी थी। मगर गलियों के जाल में खांटी बनारसी युवाओं को तलाश पाना टेढ़ी खीर था। ईश्वरगंगी, लोहटिया, लक्सा आदि क्षेत्रों में बीच-बीच में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। सबसे बड़ा आंदोलन 30 सितंबर 1921 को हुआ और इसका गवाह बना ऐतिहासिक टाउनहॉल मैदान।

विदेशी वस्त्र बहिष्कार आंदोलन की अगुवाई कर रहे डॉ. अब्दुल करीम को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर एक साल की सजा सुनाई। मगर बनारसी जनता इसके बाद भी कहां चुप रहने वाली थी। हर गली मोहल्ले से विदेशी वस्त्र जुटाए महिला पुरुष 30 सितंबर को टाउनहाल मैदान पहुंचे। मैदान में विदेशी वस्त्रों का पहाड़ खड़ा हो गया। डॉ. भगवानदास ने इस होलिका में आग लगाई और इसकी लपटें मुख्य भवन से भी ऊंची उठीं।


विदेशी वस्त्र बहिष्कार से पहले खादी अपनाने का विकल्प भी बनारस ने ही देश को दिया। देश का पहला गांधी आश्रम वाराणसी में आचार्य कृपलानी ने खोलवाया था। प्रो. राय बताते हैं कि ‘स्वदेशी अपनाओ’ का नारा विभिन्न रूपों में 1905 या इससे भी पहले से चल रहा था मगर कभी इसके सार्थक परिणाम नहीं मिल सके। गांधी जी ने इसे समझा और बहिष्कार से पहले जनता को विकल्प दिया। गांधी जी की प्रेरणा पर आचार्य कृपलानी ने पहला ‘श्री गांधी आश्रम’ बनारस के ईश्वरगंगी में खोलवाया। इसके बाद वाराणसी के साथ ही देश में सैकड़ों गांधी आश्रम खुल गए। यहां खादी और चरखा की बातें होने लगीं और यहीं से जनता ने खादी अपनाया और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर अंग्रेजों के उद्योग पर भी करारा प्रहार किया।