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चंदौली के इस सपूत ने लेफ्टिनेंट बन पेश की मिसाल , युवाओं के लिए बना प्रेरणा स्त्रोत

चंदौली के इस सपूत ने लेफ्टिनेंट बन पेश की मिसाल , युवाओं के लिए बना प्रेरणा स्त्रोत

भारतीय सेना, देश की रक्षा और सुरक्षा में हर पल तत्‍पर. देश की सेनाएं आम नागरिकों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहती हैं. मगर साथ ही उन लोगों को भी मौका देती हैं जो जिंदगी में कुछ करके दूसरों के सामने एक मिसाल कायम करना चाहते हैं. ऐसे ही लोगों में एक नाम है 21 साल के लेफ्टिनेंट सुजीत का. पिछले दिनों इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) की पासिंग आउट परेड में ले. सुजीत के कंधे पर भी सितारे सजे हैं. इन सितारों को हासिल करना आसान काम नहीं था क्‍योंकि उनके पिता को हर पल गांववालों के मजाक और तानों का सामना करना पड़ता था.


ले. सुजीत उत्‍तर प्रदेश के छोटे से जिले चंदौली के बसली गांव के रहने वाले हैं. सुजीत, आर्मी ऑर्डनेंस कोर (AAC) को ज्‍वॉइन करेंगे. ले. सुजीत के पिता ब्रजेंद्र वाराणसी में सफाईकर्मी हैं तो मां आशा कर्मी हैं.

जब पासिंग आउट परेड में ले. सुजीत की यूनिफॉर्म पर सितारे चमके तो पिता की आंखों में आंसू आ गए. उन्‍होंने भावुक होते हुए कहा, ‘मैंने झाड़ू उठाई लेकिन अब मेरा बेटा बंदूक उठाकर देश की सेवा करेगा.

‘ ले. सुजीत को उम्‍मीद है कि उनकी सफलता गांव के बाकी युवाओं को प्रेरित करेगी और वो भी इस यूनिफॉर्म को पहनने के लिए आगे आएंगे.

ले. सुजीत का छोटा भाई आईआईटी में जाना चाहता है. उनकी दो बहनें जिसमें से एक डॉक्‍टर तो दूसरी आईएएस ऑफिसर बनना चाहती है.


ले. सुजीत अपने गांव में पहले व्‍यक्ति हैं जो आर्मी ऑफिसर बने हैं. यह उनकी दृढ़ इच्‍छाशक्ति और उनकी लगन का ही नतीजा है जो आज वो इस मुकाम पर पहुंच सके हैं.

आज उनका पूरा परिवार उनकी सफलता पर खुश है और गौरान्वित महसूस कर रहा है. मगर ये इतना आसान नहीं था. ले. सुजीत ने शुरुआती शिक्षा चंदौली में ही हासिल की. मगर यहां पर आगे की पढ़ाई के लिए अच्‍छा स्‍कूल नहीं था.

वो अपने पिता के साथ वाराणसी आकर रहने लगे. वाराणसी में वो अपने पिता, छोटे भाई और बहनों के साथ रहते हैं. मां, गांव में ही रहकर अपनी नौकरी कर रही हैं.

पिता ब्रजेंद्र नहीं चाहते थे कि गांव में अच्‍छे स्‍कूल का न होना उनके बच्‍चों की जिंदगी में कभी कोई रूकावट बने. इसके लिए वो उन्‍हें लेकर वाराणसी आ गए. पिता ब्रंजेद्र की कोशिशें सफल होती भी दिख रही हैं.


पिता ब्रजेंद्र को आज भी याद है कि कैसे जब वो अपने बेटे को पढ़ाई के लिए राजस्‍थान भेज रहे थे तो गांव के लोगों ने उनका कैसे मजाक उड़ाया था.

पिता, बेटे को आर्मी ऑफिसर बनते देखना चाहते थे और इसी उम्‍मीद में राजस्‍थान भेजना चाहते थे. तब गांव वालों ने उनसे कहा, ‘ बेटा कभी ऑफिसर नहीं बन पाएगा और आगे उसको भी सफाई का ही काम करना पड़ेगा.

‘ 19 जून को जब आईएमए की पासिंग आउट परेड में बेटा यूनिफॉर्म पहने था और उसके कंधे पर सितारे चमक रहे थे तो पिता की छाती गर्व से फूली जा रही थी.

पिता को दुख बस इस बात का था कि बेटे की पासिंग आउट परेड में वो कोविड-19 के प्रोटोकॉल के चलते शामिल नहीं हो पाए. हालांकि टीवी पर लाडले को यूनिफॉर्म में देखकर उनकी आंखें खुशी से जरूर छलछला गई थीं.