सम्पादकीय :: 1971 के वॉर से कहां हैं भारत के वो 54 लापता सैनिक? BSF जवान की वापसी से समझिये आज कितना बदल गया है भारत...
शौर्य एवं जोश से परिपूर्ण यह लेख पढ़ते हुए आपके मन को जरूर देशप्रेम से ओतप्रोत और सोचने पर मजबूर कर देगा कि, अब हम सब एक नए भारत में एक शक्तिशाली नेतृत्व के साए में जी रहे हैं।आज इस नए युग के भारत में सब-कुछ संभव है, कुछ भी अब असम्भव नहीं हैं.....(A. K.Keshari)
आज जब-जब भारत-पाकिस्तान संबंधों की बात आती है तब 1971 की वॉर में 54 लापता भारतीय सैनिकों की बात जरूर होती है। क्योंकि माना ये जाता है कि ये सैनिक पाकिस्तान की जेलों में आज भी बंद हैं। जब से देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है तब से इनके परिवार वालों को उम्मीद है कि देश उन सैनिकों को पाकिस्तान से रिहाई के बारे में जरूर सोचेगा। चार दशकों से अपने परिजनों का इंतजार कर रहे लोगों को BSF जवान पूर्णम कुमार की त्वरित वापसी एक बार फिर उम्मीद जगी होगी कि पीएम मोदी उनकी भी जरूर सुध लेंगे। पूर्णम कुमार शॉ की वापसी भारत की बढ़ती कूटनीतिक, सैन्य, और सामाजिक ताकत को दर्शाती है। BSF जवान की रिहाई को लेकर कहानी ये सामने आ रही है कि भारतीय सेना ने भी एक पाकिस्तानी रेंजर कैद कर लिया था। जिसके लिए पाकिस्तानियों को झुकना पड़ा।
यह नए भारत की उस छवि को रेखांकित करता है, जो अपने नागरिकों और सैनिकों की सुरक्षा के लिए सख्त और सक्रिय रुख अपनाता है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पायलट अभिनंदन की वापसी और कतर में मृत्यु की सजा पा चुके नेवी अफसरों की वापसी भी मोदी सरकार के अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बढ़ते दबदबा का प्रतीक था. जाहिर के 54 सैनिकों की वापस का मुद्दा हमारे पुराने घाव हरे कर देता है।
1-1965 और 1971 की जंग में कथित रूप से लापता हुए 54 भारतीय सैनिकों का रहस्य
भारत के 54 लापता सैनिकों का मुद्दा 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ा है, जब ये सैनिक युद्धबंदी बनाए गए या लापता हो गए। इनमें से अधिकांश भारतीय सेना, वायुसेना और अन्य बलों के जवान थे, जिनके बारे में माना जाता है कि वे पाकिस्तान की हिरासत में हैं। भारतीय सरकार का मानना है कि ये सैनिक पाकिस्तानी जेलों में हो सकते हैं, लेकिन चार दशकों से अधिक समय बीतने के बावजूद उनकी स्थिति, संख्या, या जीवित होने की पुष्टि नहीं हो सकी है।
2019 में भारतीय संसद में रक्षा मंत्रालय ने इन 54 सैनिकों की सूची जारी की थी जिसके बाद से इन सैनिकों के परिजनों को उनकी वापसी की उम्मीद जगी। इस मुद्दे को फिर से उठाया गया। हालांकि, सरकार पर परिवारों ने यह आरोप लगाया है कि इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए।
ऑर्गेनाइजर के एक लेख में कई ऐसी घटनाओं का जिक्र किया गया है जिसमें तमाम उदाहरण दिए गए हैं जिससे कि लगता है कि 54 भारतीय युद्धबंदी पाकिस्तान की जेलों में बंद थे। हालांकि इनमें से कुछ अब जीवित न हों पर कुछ गंभीर मानसिक और शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हैं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो, जो लाहौर की कोट लखपत राय जेल में कैद थे। भुट्टो ने जेल अधिकारियों को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि उनके बगल वाले बैरक में रखे गए भारतीय युद्धबंदियों को वहां से हटाया जाए। विक्टोरिया की पुस्तक का हवाला देते हुए संघ के मुखपत्र में कहा गया है कि भुट्टो ने जेल से लिखा था कि मेरे बगल की बैरक में लगभग पचास पागल भारतीय कैदी थे। रात के सन्नाटे में उनकी चीख-पुकार को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा।
2-93000 पाकिस्तानी युद्धबंदी वापस पाकिस्तान भेजे गए
यह घटना उन बहादुर सैनिकों के साथ हुए अन्याय की चरम सीमा को दर्शाती है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए शौर्यपूर्वक युद्ध लड़ा, लेकिन अपनी ही सरकार द्वारा भुला दिए गए, जिन्होंने शिमला समझौते के तहत पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को रिहा करने से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री, सरकार ने अपने उन 54 सैनिकों की रिहाई सुनिश्चित नहीं की, और एक बार भी न सोचा।
1971 के युद्ध में भारत की शानदार विजय के बाद पाकिस्तान दो भागों में विभाजित हो गया, जिससे भारत को वार्ता की मेज पर स्पष्ट बढ़त मिली। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने युद्ध के पूर्वी मोर्चे पर कब्जा किए गए पाकिस्तानी सैनिकों को उदारता से वापस भेज दिया, जबकि पाकिस्तान ने दूसरी ओर चतुराई से अपने रिकॉर्ड में भारतीय PoWs के बारे में गलत जानकारी दी और उनकी उपस्थिति को छिपा लिया।
ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) एच.एस. घुम्मन ने इंडिया टुडे से कहा, विडंबना यह है कि भारत ने उनके 93,000 बंदी रिहा कर दिए, लेकिन 54 भारतीयों को नहीं ला सका, जिनकी किस्मत अब भी अज्ञात है। सच्चाई यह है कि उनकी रिहाई के प्रयास आधे-अधूरे मन से किए गए। सरकार ने उनके बलिदान को ही नहीं, उनके परिवारों के आँसुओं को भी अनदेखा कर दिया जो अब भी उनके लौटने की आशा में जी रहे हैं।
इस विषय पर शोध कर रहे लोगों का मानना है कि भारतीय PoWs की पाकिस्तान में उपस्थिति के कई प्रमाण मौजूद हैं। इसके लिए मेजर अशोक सूरी के पत्र, मेजर ए.के. घोष और फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी.वी. तांबये और मेजर घोष का मामला, और सिपाही जसपाल सिंह का मामलों का उदाहरण दिया जाता है। ये मामले कुछ ऐसे ही थे जो समय समय पर उजागर हुए तो ऐसा लगा कि पाकिस्तान के जेलों में तमाम भारतीय युद्धबंदी जेलों में सड़ रहे हैं।
3-सरबजीत को मार डाला
सरबजीत सिंह, एक भारतीय किसान थे, जो 1990 में गलती से सीमा पार करने पर पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर लाहौर और फैसलाबाद में 1990 के बम विस्फोटों का आरोप लगा, जिसमें 14 लोग मारे गए थे। 1991 में पाकिस्तानी अदालत ने उन्हें जासूसी और आतंकवाद के लिए फांसी की सजा दी। भारत ने दावा किया कि सरबजीत निर्दोष थे। उनकी बहन दलबीर कौर ने रिहाई के लिए अभियान चलाया, लेकिन 26 अप्रैल 2013 को लाहौर की कोट लखपत जेल में कैदियों ने उन पर हमला किया। 2 मई 2013 को उनकी मृत्यु हो गई। भारत ने इसे पाकिस्तानी सैन्य-खुफिया तंत्र की साजिश बताया, ताकि भारत-पाक संबंधों में तनाव बढ़े। उस समय भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता की कोशिशें चल रही थीं।
कोट लखपत जेल में सरबजीत को कुख्यात कैदियों के साथ रखा गया, जो सुरक्षा में चूक या जानबूझकर की गई साजिश का संकेत देता है। सरबजीत की हत्या के समय (2013) भारत एक सॉफ्ट स्टेट के रूप में जाना जाता था। लेकिन 2025 में BSF जवान पूर्णम शॉ की रिहाई और जाधव मामले में प्रगति से भारत की मजबूती झलकती है। सरबजीत की त्रासदी यह याद दिलाती है कि पाकिस्तान के साथ संबंधों में सतर्कता और आक्रामक कूटनीति जरूरी है।
4-कुलभूषण जाधव को फांसी देने की बात करता है, लेकिन अब हिम्मत नहीं है
कुलभूषण जाधव पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी को 2016 में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया गया। पाकिस्तान ने उन पर रॉ के लिए जासूसी और विध्वंसक गतिविधियों का आरोप लगाया। 2017 में सैन्य अदालत ने उन्हें फांसी की सजा दी. भारत ने आरोप खारिज करते हुए कहा कि जाधव को ईरान से अपहृत किया गया, जहां वे व्यापार कर रहे थे। भारत ने वियना संधि के उल्लंघन का हवाला दिया, क्योंकि पाकिस्तान ने काउंसलर एक्सेस से इनकार किया। भारत ने 2017 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में मामला उठाया। ICJ ने फांसी पर रोक लगाई और 2019 में आदेश दिया कि पाकिस्तान सजा की समीक्षा करे, जाधव को काउंसलर एक्सेस दे, और फांसी पर रोक बनाए रखे. भारत ने इसे कूटनीतिक जीत माना।
यह भारत की बढ़ती ताकत का ही परिणाम है कि पाकिस्तान अब फांसी देने की हिम्मत नहीं कर रहा। माना जाता है कि ICJ का दबाव, भारत की सैन्य-कूटनीतिक ताकत, और पाकिस्तान की अस्थिर स्थिति उसे रोक रही है। 2021 में पाकिस्तान ने समीक्षा बिल पास किया, लेकिन 2025 में सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार न देना ICJ आदेशों का उल्लंघन है। जाधव अभी जेल में हैं; समीक्षा प्रक्रिया धीमी है. भारत का कहना है कि काउंसलर एक्सेस "निर्बाध" नहीं है। 1971 के 54 लापता सैनिकों के विपरीत, जाधव मामले में भारत ने ICJ के जरिए सफलता पाई, जो नए भारत की ताकत को दर्शाता है।
5-विंग कमांडर अभिनंदन और अब BSF जवान की रिहाई ने बता दिया कि भारत अब कितना आक्रामक है
14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमला किया। इसके जवाब में पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की। 27 फरवरी 2019 को अभिनंदन ने अपने मिग-21 से पाकिस्तानी F-16 को मार गिराया, लेकिन उनका विमान क्षतिग्रस्त हो गया और वे पाकिस्तानी क्षेत्र में उतर गए। पाकिस्तान ने उन्हें हिरासत में लिया। भारत ने तत्काल कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाया। विदेश मंत्रालय ने अभिनंदन के खिलाफ किसी भी एक्शन को युद्ध की घोषणा माना और वैश्विक समुदाय, खासकर अमेरिका ने भारत का साथ दिया।
60 घंटों के भीतर, 1 मार्च 2019 को पाकिस्तान ने अभिनंदन को रिहा कर दिया। बाद में पाकिस्तानी नेताओं ने स्वीकार किया कि भारत के हमले के डर से रिहाई हुई। यह भारत की आक्रामक कूटनीति और सैन्य ताकत का उदाहरण था। इसी तरह बीएसएफ जवान पूर्णम शॉ की रिहाई के बाद ये कहानी सामने आ रही है कि जब पाकिस्तान ने पूर्णम को पकड़ा था तो एक-दो दिन में बीएसएफ ने कार्रवाई करके पाकिस्तान रेंजर के एक जवान मोहम्मदुल्ला को कैद कर लिया था, नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान को पूर्णम की रिहाई के लिए झुकना पड़ा।