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देवशयनी एकादशी पर  भगवान विष्णु 4 महीने के लिए निद्रा में होते हैं लीन , तो सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी भगवान महेश की होती है , जानें पूरी कहानी

देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने के लिए निद्रा में होते हैं लीन , तो सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी भगवान महेश की होती है , जानें पूरी कहानी

धर्म
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) कहा जाता है. देवशयनी एकादशी को शास्त्रों में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.


मान्यता है कि इस एकादशी से जगत के पालनहार भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के लिए चले जाते हैं. इन चार महीनों में जगत के संचालन का जिम्मा भगवान शिव (Lord Shiva) के हाथों में होता है. देव के निद्रा में चले जाने के कारण इस एकादशी को देवशयनी और हरिशयनी एकादशी कहा जाता है. हरि शयन के चार महीनों के निद्राकाल को चातुर्मास (Chaturmas) कहा जाता है. चातुर्मास को पूजा पाठ के लिए विशेष माना जाता है, लेकिन इस बीच किसी भी तरह के शुभ काम करना वर्जित है.

कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी पर जब भगवान नारायण योग निद्रा से जागते हैं, उसी दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. इस बार देवशयनी एकादशी 10 जुलाई को है. ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि क्या वाकई देवशयनी एकादशी पर देव सो जाते हैं, या देव निद्रा के कोई और मायने हैं ? यहां जानिए इसके बारे में.


समझें देवशयन और देव जागरण के मायने
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र की मानें तो जो चैतन्य तल पर हमेशा जागृत अवस्था में रहता हो, उसे ईश्वर माना गया है. ऐसे में हमेशा जागने वाला ईश्वर इतनी लंबी अवधि के लिए भला सो कैसे सकता है ? वास्तव में देवशयन और देवजागरण ऋषि मुनियों द्वारा आम लोगों के लिए बनायी गईं व्यवस्थाएं हैं, ताकि लोगों को धर्म से जोड़ा जा सके और उनके जीवन को समय के अनुसार व्यवस्थित किया जा सके. देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी के समय तक मौसम में बदलाव की स्थिति होती है. ऐसे में इन दिनों को मांगलिक कार्यों के लिए शुभ न बताकर लोगों को कुछ नियमों के पालन करने के लिए कहा गया है.



देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास में होती है. इसके कुछ दिनों बाद ही सावन की शुरुआत हो जाती है. सावन का महीना (Sawan Month) वर्षा ऋतु का महीना है. वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद शरद ऋतु का आगमन होने लगता है. यानी चातुर्मास के ये महीने मौसम के बदलाव के महीने हैं. मौसम के बदलाव होने पर हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. सर्दी, जुकाम और फ्लू और संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है. तमाम सब्जियों, फलों में बैक्टीरिया और कीड़े पनपने लगते हैं. सामान्य जन-जीवन बारिश के कारण थोड़ा अस्त व्यस्त और गृहकेंद्रित हो जाता है. इस कारण इन चार महीनों में शुभ कार्यों को न करने, खान पान को लेकर सावधानी बरतने और संयमित जीवन जीने की सलाह दी जाती है.



– इन चार महीनों में व्यक्ति को खुद को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए ईश्वर की आराधना करनी चाहिए.

– तला भुना गरिष्ठ भोजन, दूध और अन्य डेयरी प्रोडक्टस का सेवन नहीं करना चाहिए. हल्का, सुपाच्य और सात्विक भोजन करना चाहिए. एक समय भोजन करना सर्वश्रेष्ठ है.

– चतुर्मास के दौरान वर्षाकाल रहता है. ऐसे में कई तरह के कीड़े मकोड़े पनपते हैं. ऐसे में बैंगन, गोभी, मूली और हरी पत्तेदार सब्जियां नहीं खानी चाहिए.

– इम्युनिटी को मजबूत करने ​के लिए योग और प्राणायाम करना चाहिए.

– बारिश के कारण जन जीवन और व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त होने के कारण इस बीच किसी भी तरह के शुभ कार्यों को करने की मनाही है.